श्री क्षेत्रपाल पूजन

क्षेत्रपाल देवता पूजनम्

सर्वप्रथम एक चौकी पर वस्त्र बिछाकर अष्टदल कमल बनाकर बीच में ताम्रकलश रखकर पूर्णपात्र के ऊपर सोने की क्षेत्रपाल की प्रतिमा अग्न्युत्तारण पूर्वक विराजमान करके बाएं हाथ में चावल रखकर दाहिने हाथ से छोडते हुए नीचे लिखे मन्त्रों से आवाहन करें ।

ततो हस्ते जलं गृहीत्वा अधपूर्वोच्चारित एवं गुण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ मया प्रारब्धस्य अमुककर्मणोऽङ्गुतया अस्मिन्क्षेत्रपालपीठे मध्ये क्षेत्रपाल पूजनपूर्वकं क्षेत्रपालमावाहयेत् हस्तेऽक्षतान्गृहीत्वा ॥ ॐ नमोस्त्तुसर्प्पेब्भ्योयेकेच पृथ्वीमनु ॥ येऽअन्तरिक्क्षेयेदिवि तेब्भ्य : सर्प्पेब्भ्यो नम : ॥ ॐ भू र्भुव : स्व : क्षेत्रपालाय नम : क्षेत्रपालम् आ० स्था०॥ भो क्षेत्रपाल इहागच्छ इहतिष्ठ ।

पूर्वस्थित

ॐ भूर्भुव : स्व : अजराय नम : ॥१॥

ॐ भूर्भुव : स्व : व्यापकाय नम : ॥२॥

ॐ भूर्भुव : स्व : इन्द्रचौराय नम : ॥३॥

ॐ भूर्भुव : स्व : इन्द्रमूर्तयेनम : ॥४॥

ॐ भूर्भुव : स्व : उक्षाय नमः ॥५॥

ॐ भूर्भुव : स्व : कूष्माण्डाय नमः ॥६॥

अग्निकोण

ॐ भूर्भुव : स्व : वरुणाय नमः ॥७॥

ॐ भूर्भुव : स्व : बटुकाय नमः ॥८॥

ॐ भूर्भुव : स्व : विमुक्ताय नम : ॥९॥

ॐ भूर्भुव : स्व : लिप्तकाय नम : ॥१०॥

ॐ भूर्भुव : स्व : लीलोकाय नमः ॥११॥

ॐ भूर्भुव : स्व : एकद्रष्टाय नमः ॥१२॥

दक्षिणस्थित

ॐ भूर्भुव : स्व : ऐरावताय नमः ॥१३॥

ॐ भूर्भुव : स्व : ओषधिध्नाय नम : ॥१४॥

ॐ भूर्भुव : स्व : बन्धनाय नमः ॥१५॥

ॐ भूर्भुव : स्व : दिव्यकाय नमः ॥१६॥

ॐ भूर्भुव : स्व : कम्बलाय नमः ॥१७॥

ॐ भूर्भुव : स्व : भीषणाय नमः ॥१८॥

नैऋर्त्यकोण

ॐ भूर्भुव : स्व : गवयाय नम : ॥१९॥

ॐ भूर्भुव : स्व : घण्टाय नम : ॥२०॥

ॐ भूर्भुव : स्व : व्यालाय नम : ॥२१॥

ॐ भूर्भुव : स्व : अणवे नमः ॥२२॥

ॐ भूर्भुव : स्व : चन्द्र वारुणाय नमः ॥२३॥

ॐ भूर्भुव : स्व : पटाटोपाय नमः ॥२४॥

पश्चिमदिशा

ॐ भुर्भुव : स्व : जटिलाय नमः ॥२५॥

ॐ भूर्भुव : स्व : क्रतवे नम : ॥२६॥

ॐ भूर्भुव : स्व : घण्टेश्वराय नमः ॥२७॥

ॐ भूर्भुव : स्व : विटङ्काय नमः ॥२८॥

ॐ भूर्भुव : स्व : मणिमानाय नमः ॥२९॥

ॐ भूर्भुव : स्व : गणबन्धवे नमः ॥३०॥

वायव्यकोण

ॐ भूर्भुव : स्व : डामराय नमः ॥३१॥

ॐ भूर्भुव : स्व : ढुण्ढिकर्णाय नमः ॥३२॥

ॐ भूर्भुव : स्व : स्थविराय नमः ॥३३॥

ॐ भूर्भुव : स्व : दन्तुराय नमः ॥३४॥

ॐ भूर्भुव : स्व : नागकर्णाय नम : ॥३५॥

ॐ भूर्भुव : स्व : धनदाय नम : ॥३६॥

उत्तरदिशा

ॐ भूर्भुव : स्व : महाबलाय नमः ॥३७॥

ॐ भूर्भुव : स्व : फेत्काराय नमः ॥३८॥

ॐ भूर्भुव : स्व : चीत्काराय नमः ॥३९॥

ॐ भूर्भुव : स्व : सिंहाय नमः ॥४०॥

ॐ भूर्भुव : स्व : मृगाय नमः ॥४१॥

ॐ भूर्भुव : स्व : यक्षाय नमः ॥४२॥

ॐ भूर्भुव : स्व : मेघवाहनाय नमः ॥४३॥

ईशानकोण

ॐ भूर्भुव : स्व : तीक्ष्णोष्ठाय नमः ॥४४॥

ॐ भूर्भुव : स्व : अनलाय नमः ॥४५॥

ॐ भूर्भुव : स्व : शुक्लतुण्डाय नमः ॥४६॥

ॐ भूर्भुव : स्व : सुधालापाय नमः ॥४७॥

ॐ भूर्भुव : स्व : बर्बरकाय नम : ॥४८॥

ॐ भूर्भुव : स्व : पवनाय नमः ॥४९॥

ॐ भूर्भुव : स्व : पावनाय : नम : ॥५०॥

प्रतिष्ठा

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमन्दधातु । विश्वेदेवासइहमादयन्तामों ३ प्रतिष्ठ : ॥

ॐ भूर्भुव : स्व : क्षेत्रपाल सहिता : अजरादिक्षेत्रपाल देवा : सुप्रतिष्ठता वरदा भवत् । आवाहनादिषोडशोपचारै : पूजनं कुर्यात् ।

स्तुतिपाठ

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशि वदनं भूमिकम्पायमानं सं सं संहार मूर्त्ति शिर मुकुट जटा शेखरं चन्द्रबिम्बम् । दं दं दं दीप्तकायं विकृत नखमुखं चोर्घ्वरेखाकपालं पं पं पं पापनाशं प्रणतपशुपतिं क्षेत्रपालं नमामि ।

प्रार्थयेत्

यद्‌ङ्गत्वेन भो देवा : पूजिता विधिमार्गत : । कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन् क्रतूद्भवम् ॥ हस्ते जलं गृहीत्वा ॥

अनेन कृतेन पूजनेत ॐ भूर्भुव : स्व : क्षेत्रपाल सहिता अजरादि क्षेत्रपाल देवा : प्रीयन्तां न मम ।

अथ क्षेत्रपाल बलि

एक मिट्टी का बडा दीपक ( सराई ) लेकर उसमें चार मुंह की ज्योत लगावें। दीपक में सरसों का तेल डालें . उसमें सिन्दूर , उडद , पापड , दही , गुड , सुपारी आदिरखकर दीप प्रज्वलित करें और क्षेत्रपाल का आवाहन करें ।

ॐ क्षेत्रपालाय शाकिनी डाकिनी भूतप्रेत बेताल पिशाच सहिताय इमं बलिं समर्पयामि । भो क्षेत्रपाल : दिशो रक्ष बलिं भक्ष मम यजमानस्य सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयु : कर्ता शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव : ।

ॐ ह्नीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्नीं ॐ ।

ॐ क्षेत्रपालाय नम : । इति पंचोपचारै : संपूज्य । प्राथयेत्

ॐ नमो वै क्षेत्रपालस्त्वं भूतप्रेत , गणै : सह । पूजाबलिं गृहाणेमं सौम्यो भवतु सर्वदा ॥

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि में । देहि में आयुरारोग्यं निर्विघ्नं कुरु सर्वदा न : ॥

अब इस दीपक को उठाकर यजमान की तरफ आवृत कर बिना पीछे मुडे बाहर दीपक को चौराहे पर रखावें । ब्राह्मण शांतिपाठ करें । ब्राह्मण द्वार तक जल छोडें दीपक को रखकर आने वाला व्यक्ति नहाकर या हाथ पैर धोकर आवे ।

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