अथ् श्री सिद्धिविनायक मन्त्र प्रयोग
श्री सिद्धिविनायक मन्त्रेन अष्टोत्तरशतं प्रतिदिनं जपेत् कार्यसिद्धं भवति।
यात्रासमये जपित्वा मार्गभयं नाशयति सर्वकार्याणि सिद्ध्यन्ति॥
विनियोग
(दाहिनी हथेली में जल लेकर निम्न मंत्र पढ़े)
ॐ अस्य श्री सिद्धिविनायक मन्त्रस्य, श्री हरि ऋषिः, मोहिनीसाम्राज्य देवताः , स्वाहा कीलकं, श्री सिद्धिविनायक मन्त्र जपेन् विनियोगः।
(मन्त्र पढ़कर जल भुमि पर छोड़िए। इसके पश्चात न्यास करें)
करन्यास
कर न्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हथेलियों और हाथ के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास (स्थापन) किया जाता है, इसी प्रकार अंगन्यास में हृदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना होती है। मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान् मानकर उन–उन अंगो का नाम लेकर उन मन्त्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वन्दन किया जाता है, ऐसा करने से पाठ या जप करने वाला स्वयं मन्त्रमय होकर मन्त्रदेवताओं द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है। उसके पारमार्थिक देह की बाहर-भीतर सर्वथा शुद्धि होती है, दिव्य बल प्राप्त होता है और साधना निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण तथा परम लाभदायक होती है।
- ॐ नमो सिद्धिविनायकाय अंगुष्ठाभ्याम् नमः। (दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अंगूठों का स्पर्श)
- सर्व कार्य कर्त्रे तर्जनीभ्यां नमः। (दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श)
- सर्व विघ्न प्रशमनाय मध्यमाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श)
- सर्व राज्यं वशकरणाय अनामिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से अनामिका अँगुलियों का स्पर्श)
- सर्व जन सर्वं स्त्रीं पुरुषाकर्षणाय कनिष्ठकाभ्यां नमः। (दोनों अँगूठों से कनिष्ठिका अंगुलियों का स्पर्श)
- श्री ॐ स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥ (हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श)
हृदयादि न्यास
इस प्रक्रिया में दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ‘हृदय’ आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है।
- ॐ नमो सिद्धिविनायकाय हृदयाय नमः। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय स्पर्श)
- सर्व कार्य कर्त्रे शिरसे स्वाहा। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से सिर का स्पर्श)
- सर्व विघ्न प्रशमनाय शिखायै वषट्। (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से शिखा का स्पर्श)
- सर्व राज्यं वशकरणाय कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ ही स्पर्श)
- सर्व जन सर्वं स्त्रीं पुरुषाकर्षणाय नेत्रत्रयाय वौषट्। (दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)
- श्री ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्। (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)
ध्यान मन्त्र
एकदन्तं शूर्पकर्णं गजवक्त्रं चुर्भुजम्।
पाशांकुश धरं देवं ध्यायेत्सिद्धिविनायकम्॥
श्री सिद्धिविनायक गणपति मन्त्र
ॐ नमो सिद्धि विनायकाय, सर्व कार्य कर्त्रे, सर्व विघ्न प्रशमनाय, सर्व राज्यं वशकरणाय, सर्व जन सर्व स्त्रींपुरुषाकर्षणाय, श्री ॐ स्वाहा ॥
समर्पण
(प्रयोग के पश्चात समर्पण करें)
गुह्रातिगुह्रागोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम।
सिद्धिभर्वतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरी॥
क्षमा प्रार्थना मंत्र
(निम्न मंत्र से क्षमा प्रार्थना करें)
यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत्।
पूर्णम् भवतु तत्सर्वं त्वत्प्रसादात् महेश्वरिः॥
मंत्र हीनं क्रिया हीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मायादेव परिपूर्ण तदस्तु मे॥
अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेअहर्निशि मया ।
दासोअयिमितिमां मत्वा क्षम्यतां परमेश्वर॥
आसन के नीचे भूमि पर जल गिरा कर उस जल को अंगुली से लेकर, “ॐ इन्द्राय नमः। ॐ शक्राय नमः” बोलकर नेत्रों का स्पर्श करें।
प्रयोग- संकल्पित होकर विधानपूर्वक प्रति बुधवार अथवा दैनिक रूप से श्री सिद्धिविनायक मन्त्र द्वारा दूर्वा अभिमन्त्रित कर श्री गणेश जी को समर्पित करने से प्रत्येक मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है। मनोकामना पूर्ति पश्चात प्रयौगिक मन्त्र संख्या का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा दशांश ब्राह्मण भोजन कराना परम आवश्यक है अन्यथा प्रयोग को पूर्णता प्राप्त नहीं होती।
“श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष। सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष॥”