इच्छित वर प्राप्ति हेतु देवी माँ कात्यायनी मन्त्र प्रयोग

“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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आधुनिक समय में कन्या के विवाह की समस्या प्रायः प्रत्येक गृहस्थ के समक्ष उपस्थित होती है, इसके लिये माता-पिता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों में वर्णित ‘कात्यायनि देवी’ का अनुष्ठान बड़ा ही अद्भुत व सिद्धिप्रद है। जन साधारण को जानकारी व जनहित में इस मंत्र के अनुष्ठान की विधि दी जा रही है। इसे नियम व श्रद्धा पूर्वक स्वयं करने अथवा ब्राह्मणों द्वारा कराने से कन्या के विवाह में आने वाले विघ्न दूर होकर विवाह सकुशल सम्पन्न हो जाता है तथा वैवाहिक जीवन सुखी और समृद्ध होता है।

कात्यायनी देवी नवदुर्गा या देवी पार्वती (शक्ति) के नौ प्रकारों का वर्ग हैं। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए उनका नाम ‘कात्यायनी’ प्रचलित है। कात्यायनी शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘वह जो मजबूत और घातक दंभ को हराने की स्थिति में है।’ देवी कात्यायनी बृहस्पति (गुरु) ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी कात्यायनी सिंह पर विराजमान हैं, उनके तीन नेत्र और चार भुजाएं हैं। एक हाथ में चंद्रहास नामक तलवार है, एक हाथ में कमल का पुष्प और शेष दो हाथ अभयमुद्रा तथा वरदमुद्रा में हैं। देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं, इनकी पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है।

अथ् कात्यायनी मन्त्र प्रयोग

श्रीमद् भागवत महापुराण में भगवती कात्यायनी के पूजन द्वारा भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त करने के साधन का सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। यह व्रत पूरे मार्गशीर्ष (अगहन) के मास में होता है। भगवान श्री कृष्ण को पाने की लालसा में ब्रजांगनाओं ने अपने हृदय की लालसा पूर्ण करने हेतु यमुना नदी के किनारे से घिरे हुए राधाबाग नामक स्थान पर श्री कात्यायनी देवी का पूजन किया।
मां कात्यायनी सर्वशक्तिस्वरूपणि, दुःखकष्टहारिणी, आह्लदमयी, करुणामयी अपनी दिव्य अलौकिक कृपादृष्टि से सभी भक्तों के मनोरथ सिद्ध करतीं हैं। भगवती कात्यायनी के ध्यान स्तोत्र और कवच, और मन्त्र के जप करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है। इससे रोग, शोक, संताप, भय से मुक्ति मिलती है। तथा अभीष्ट मनोकामना पूर्ण होती है।

प्रातःकाल एवं गोधूलि वेला के समय, स्नान करके पीत वस्त्र अथवा लाल वस्त्र धारण करके पूजन से पूर्व पूजन सामाग्री को यथाक्रम यथास्थान रखकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके शुद्ध लाल रंग की आसन पर बैठकर पहले आचमन और प्राणायाम, पवित्रीधारण, शरीर-शुद्धि और आसन-शुद्धि कर लेनी चाहिये। तत्पश्चात् स्वस्तिवाचन पाठ करके, संकल्प करके, श्री गणेश गौरी पूजन, कलश स्थापन, पुण्याहवाचन और नवग्रह मण्डल तथा अधि-प्रत्याधि देवताओं का पूजन करना चाहिये, उक्त सभी पूजन विधियों के लिए “हरिहरार्चन पूजा पद्धति” का अवलोकन करें। इसके पश्चात् ही भगवती माँ कात्यायनी जी के विशिष्ट अनुग्रह की प्राप्ति के लिये उनका पूजन करके जप आरम्भ करना चाहिए।

प्रतिज्ञा संकल्प

(दाहिने हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर निम्न प्रतिज्ञा संकल्प करें।)

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु नमः परमात्मने पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् अद्यैतस्य विष्णोराज्ञया जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे अमुक क्षेत्रे (यदि क्षेत्र का नाम पता न हो तो विष्णुप्रजापतिक्षेत्रे बोलें) अमुक स्थाने बौद्धावतारे अमुक नाम संवत्सरे अमुकायने अमुक ॠतौ अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुक नक्षत्रे अमुक राशिस्थिते चन्द्रे अमुक राशिस्थिते श्री सूर्ये अमुक राशिस्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथायथं राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुण विशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ अमुक गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुक नाम्ने शर्मा/वर्मा गुप्तोऽहं ममात्मनः सर्वारिष्टनिरसनपूर्वक सर्वपापक्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्तिपूर्वकं सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं दीर्घायुरारोग्यैश्वर्यादि वृद्ध्यर्थ॔, श्रीकात्यायनी प्रीत्यर्थञ्च यथा-ज्ञानं यथामिलितोपचारद्रव्यैः श्री कात्यायनी देवी प्रीत्यर्थम् अमुककामनया अमुक ब्राह्मणद्वाराकृतस्य श्री कात्यायनी (अमुक) मन्त्रपुरश्चरणस्य सङ्गतासिद्धयर्थम अमुकसंख्यया परिमितजप दशांश होम तद्दशांशतर्पण तद्दशांशमार्जन तद्दशांश ब्राह्मण भोजन रूपं कर्म ब्राह्मणद्वारा कारयिष्ये (यदि जप स्वयं करें तो ‘ब्राह्मणद्वारा कारयिष्ये’ के स्थानपर करिष्ये बोलें)

विनियोग

ॐ अस्य श्री कात्यायनी मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः गायत्री छन्दः दुर्गा देवीति ऐं बीजम् ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं भगवती कात्यायनी प्रीत्यर्थे जपे न्यासे च विनियोगः।

अथवा

ॐ अस्य श्री कात्यायनी मन्त्रस्य कात्यायन ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः सर्वाधिष्ठातृदेवता अविलम्बेन् उत्तमोत्तम पति प्राप्यर्थे विनियोगः ।

करन्यास

ॐ कात्यायन्यै – अंगुष्ठाभ्याम् नमः।
ॐ महामाये – तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ महायोगिन्यै – मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ अधीश्वरी – अनामिकाभ्याम् नमः।
ॐ नंदगोपसुतं देवि – कनिष्ठिकाभ्याम् नमः।
ॐ पति मे कुरु ते नमः – करतलकरपृष्ठाभ्याम् नमः॥

अथ् हृदयादि न्यासः

ॐ कात्यायन्यै – हृदयाय नमः।
ॐ महामाये – शिरसे स्वाहा।
ॐ महायोगिन्यै – शिखायै वषट्।
ॐ अधीश्वरी – कवचाय हुम्।
ॐ नंदगोपसुतं देवि – नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ पति मे कुरु ते नमः – अस्त्राय फट्॥

ध्यान मन्त्र

वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।
वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥
पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥
प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

अथवा

ॐ चन्द्रहासोज्जलवलकरां शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद, देवी दानव घातिनी॥

जप मन्त्र

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्द गोपसुतं देविपतिं मे कुरु ते नमः॥
ॐ ह्रीं कात्यायन्यै स्वाहा, ह्रीं श्रीं कात्यायन्यै स्वाहा ॥

जप कर्म समर्पण

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरी ॥

अनेन यथा….संख्येन जपकर्मणा श्री कात्यानी देव्यै प्रीयतां न मम्।
ॐ तत्सत् श्री ब्रह्मार्पणमस्तु।

यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
पूर्णम् भवतु तत् सर्वं त्वत्प्रसादात् महेश्वरिः॥

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥

ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥
श्री विष्णुस्मरणात् परिपूर्णतास्तु

अन्ते आसनाद्यः जलं निक्षिप्य ललाटे मृदा तिलकं धारयेत्।
यथा…. यस्मिन् स्थाने कर्म कृत्वा शक्रो हरति तत्कर्मम्।
तन्मृदा लक्ष्म कुर्वीत ललाटे तिलकाकृति॥

माँ कात्यायनी के अन्य मन्त्र

ॐ ह्रीं क्लीं कात्यायने नमः

हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकातां सुदुर्लभाम्॥

ॐ देवेन्द्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्रप्रिय भामिनि।
विवाहं भाग्यमारोग्यं शीघ्रलाभं च देहि मे॥

ॐ शं शंकराय सकल जन्मार्जित पाप विध्वंसनाय
पुरुषार्थ चतुष्टय लाभाय च पतिं मे देहि कुरु-कुरु स्वाहा॥

नमस्ये त्वाम्बिकेऽभीक्ष्णं स्वसन्तानयुतां शिवाम्।
भूयात् पर्तिमे भगवान् कृष्णस्तदनु मोदताम् ॥

जप की विधि एवं ध्यातव्य तथ्य

  • जप अनुष्ठान २१ दिन का ४१००० पुरश्चरण है, अतएव प्रथम दिन मंत्र का १००० की संख्या में जप करें। इसके बाद २१ दिनों तक प्रतिदिन २००० की संख्या में मंत्र का जप करें।
  • नित्य पूर्व दिशा की ओर सिर करके भुमि पर शयन करें।
  • नित्य ब्रह्ममुहूर्त में जागरण करके दैनिक शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर, स्नान करके भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देवें।
  • प्रतिदिन ठीक उसी समय मंत्र का जप करें।
  • मंत्र जप में प्रातः १ और १/४ का समय निर्धारित करें।
  • जप की पूर्णता के लिए संभव हो तो प्रतिदिन उपवास रखें, यदि संभव न हो तो एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करें।
  • प्रथम दिवस समूची हल्दी के तीन नग, लाल अथवा पीले रंग के वस्त्र में लपेट कर लाल रेशमी धागे से बांधकर रखना चाहिए जप की पूर्णता उपरांत हल्दी की वह पोटली अपने शयनकक्ष में ईशान कोण में रखना चाहिए।
  • मन्त्र का जप केले के सूखे पत्ते के आसन पर बैठकर करना चाहिए।
  • कात्यायनी मन्त्र जपने के पूर्व एक माला श्री गणेश मन्त्र “ॐ गं गणपतये नमः” की जपना चाहिए तथा एक माला अपने गुरु मन्त्र की जपना चाहिए।
  • यह जप कमलगट्टे की माला को गौमुखी में रखकर करना चाहिए।
  • जप के समय कड़ुआ तेल अथवा गौघृतयुक्त का दीपक तथा धूपबत्ती प्रज्वलित करना चाहिए।
  • साधक/साधिका को लाल अथवा पीले रंग के वस्त्र धारण करके जप करना चाहिए।
  • जपकाल में प्रतिदिन माँ कात्यायनी का, तथा केले के वृक्ष का पञ्चोपचार पूजन करें, पीले पुष्प, शहद तथा नैवेद्य के रूप में पीले मिष्ठान्न पेड़े निवेदित करें।
  • जप अनुष्ठान के दौरान, ब्रह्मचर्य का पालन करें, सत्य का आचरण करें तथा सभी प्रकार के दुष्कृत्य (छल, दंभ, द्वेष, पाखण्ड, झूठ, काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि) से बचने का प्रयास करें।
  • जप के अन्त में प्रतिदिन सद्य पति प्रापक स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
  • ४१००० की संख्या में जप पूर्ण करके इक्कीसवें दिन उसी मन्त्र द्वारा दशांश (४१००) होम, दशांश (४१०) तर्पण, दशांश (४१) मार्जन तथा दशांश (४.१) ब्राह्मण भोजन अवश्य करायें।

फलश्रुति

इस प्रकार से इस मंत्र का २१ दिनों तक नियमित रूप से जप करें। २१ दिनों तक इस मंत्र का जाप करने से आपके विवाह के प्रस्ताव आने बनने लगेंगे तथा आपका दांपत्य जीवन सुखी एवं समृध्द होकर सफल होगा।

॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष संस्थान)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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About the Author

Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi

Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi personality is best described with the following words: extravert.
Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi is active, expressive, social, interested in many things. Pandit Vishwanath Dwivedi has more than 8 years of executive experience in the field of Astrology. With all of his heart and mind, he devotes his time to this profession. He knows that he is in a certain position to help people and make their lives better. And, the most fascinating aspect of his personality is his benevolence in approaching people which leaves an impact on them to last forever. His primary area of expertise is Vedic Astrology and he uses his skills with full potential to help his clients in the best possible way. To make people happy and put them out of their misery gives him an immense kind of satisfaction. With the most righteous of intentions, he hopes to take his name and fame to the next level and spread his wings on the international domain as well.

Pandit Vishwanath, a luminary in the realm of Vedic Astrology, boasts a rich legacy of almost a decade of unwavering dedication to this ancient science. His profound knowledge transcends the boundaries of time, as he skillfully deciphers the cosmic code imprinted in the Vedas. With a penchant for unraveling celestial mysteries, Pandit Vishwanath has illuminated countless lives with his astute astrological insights. His clients seek solace in his wisdom, knowing that his predictions are rooted in the ancient wisdom of the Vedas, offering both guidance and clarity in the tumultuous sea of life. Pandit Vishwanath's commitment to preserving and disseminating Vedic Astrology's profound teachings is a beacon of hope for those navigating life's challenges. His invaluable expertise continues to inspire and empower seekers on their spiritual journeys.

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