“हरि हर हरात्मक” ज्योतिष संस्थान के माध्यम से भूमण्डल पर सनातन वैदिक धर्म एवं धार्मिक परंपराओं को उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर ले जाने हेतु प्रयासरत, आचार्य पंडित श्री पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी जी महाराज, उच्च शिक्षित, ज्योतिष, एवं वास्तु सलाहकार, तथा वैदिक कर्मकाण्ड के सरस सरल एवं मार्मिक विशेषज्ञ हैं। इन्होंने तोतादीमठ वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) से उच्च शिक्षा प्राप्त की, तथा अनेकानेक वैदिक साहित्य, दर्शन तथा पुराणों का गहन अध्ययन किया तथा पिछले अनेक वर्षों से लोक कल्याण की भावना से भारतवर्ष के अनेक क्षेत्रों में अपनी विद्वता से अनेकानेक परिवारों का जीवन सुसंस्कृत किया, इसके अलावा आप वर्तमान में सनातन वैदिक ज्योतिष के आधार पर एवं वैदिक कर्मकांड पूजा पाठ के माध्यम से अनेक पीड़ितों के सुखद जीवन हेतु प्रयासरत हैं।
प्रत्येक जातक के दाम्पत्य जीवन में विशेष अशुभ ग्रह विवेचनात्मक तथ्य – परम श्रद्धेय आचार्य पंडित श्री पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी जी महाराज।
आचार्य पंडित श्री पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी जी महाराज के अनुसार यदि जातक की कुंडली के लग्न भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव या द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तो यह मंगल दोष या कुजा दोष कहलाता है. इसे मांगलिक दोष भी कहा जाता है, ऐसा मानना है कि इसके कारण वैवाहिक जीवन में दिक्कतें पैदा होती हैं. समस्या के प्रकार और उनकी तीव्रता एक समान नहीं होती, उनका असल प्रभाव कुंडली में मंगल की स्थिति पर निर्भर करता है। अनेक ज्योतिषी मंगल दोष की तुरंत जांच करने और उसके उपाय बताने पर अधिक बल दे रहे हैं, लेकिन क्या यह सही है….? ये सही नहीं है।
आचार्य श्री पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी जी कहते हैं कि मैं पिछले तीन दशकों से वैदिक ज्योतिष का अभ्यास कर रहा हूं, और मुझे अनेकानेक ऐसे जातक मिले हैं, जिनकी कुंडली ऐसे मंगल दोष से युक्त हो कि जिसको प्रभावहीन करना संभव न हो फिर भी मैंने गहन शोध करके सरल उपायों द्वारा उनके दाम्पत्य जीवन सहज बनाया है। और आज वो सुखमय गृहस्थ जीवन यापन कर रहे हैं। उदाहरणार्थ सन २०१९ में मध्यप्रदेश में स्थित टीकमगढ नगर के प्रख्यात असाटी परिवार के कुलदीपक श्री नीरज कुमार के विवाह हेतु जन्म कुण्डली का अध्ययन करके पाया कि आपकी कुण्डली में वैर (मृ्त्यु )षडाष्टक योग बन रहा है, इस तथ्य का विवेचन करने हेतु वाराणसी एवं उज्जैन के तत्वेत्ता विद्वान ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया अन्ततः उन सबके मतानुसार यह निर्णय लिया गया कि वर वधु का विवाह कदापि उचित नही है, शुभ नही है। किन्तु मैने अपने इष्टबल से उन सभी विद्वानों के निर्णय को मान्यता नहीं दी तथा मध्यप्रदेश में स्थित श्री महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में जाकर, श्री श्री मंगलनाथ देव के सान्निध्य में वर-वधु के कल्याणार्थ मेरे परम सहयोगी पंडित श्री शैलू जी महाराज, पंडित श्री महेश जी महाराज, पंडित श्री विश्वनाथ द्विवेदी जी महाराज के सहयोग से महा दद्योधन अनुष्ठान विधिवत सम्पन्न कराया एवं दोनों के विवाह हेतु स्वीकृति दे दी। तथा आज दोनों अपनी उत्तम संतान के साथ सुखमय गृहस्थ जीवन यापन कर रहे हैं।
आचार्य पंडित श्री पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी जी महाराज
सनातनी ज्योतिर्विद
‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष संस्थान
श्री श्री १००८ श्री कुण्डेश्वर धाम, टीकमगढ मध्यप्रदेश
श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष। सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष॥