“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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व्रत, उत्सव एवं त्योहार के दिन के निर्णय में तिथि, नक्षत्र, योग, करण एवं कर्मकाल इत्यादि के संयोग का विचार करना होता है। कुछ प्रमुख व्रत-पर्वों का निर्णय आगे दिया जा रहा है, जिनमें शास्त्रीय पारिभाषिक शब्दों का अर्थ पहले जान लेना आवश्यक है जो कि इस प्रकार है –
दिन – आज के सूर्योदय से कल के सूर्योदय तक एक दिन होता है। एक दिन में ६० घटि (२४ घंटे) होते हैं। एक दिन में ८ प्रहर होते हैं। एक प्रहर ३ घंटे का होता है।
दिनमान एवं रात्रिमान
सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय दिनमान होता है। ग्रीष्म ऋतु में दिनमान ३० घटि से अधिक और शीत ऋतु में ३० घटि से कम होता है। दिनमान अक्षांश भेद से विभिन्न स्थानों पर पृथक-पृथक होता है। ६० परिमें से दिनमान घटाने पर रात्रिमान होता है।
मुहूर्त
दिनमान या रात्रिमान का १५वां भाग एक मुहूर्त होता है। अतः एक दिनमान में १५ मुहूर्त होते हैं। यदि दिनमान ३० घटि हो तो एक मुहूर्त दो घटि यानि ४८ मिनट का होगा। सूर्योदय से तीन मुहूर्त तक प्रातःकाल, तीन मुहूर्त से ६ तक संगवकाल, ६ से ९ मुहूर्त तक मध्याह्नकाल, ९ से १२ तक अपराहनकाल, १२ से १५ मुहूर्त तक सायंकाल होता है। इस प्रकार दिनमान में ३-३ मुहूर्त के ५ भाग होते हैं।
ऊषाः काल
सूर्योदय से तीन मुहूर्त अर्थात् ६ घटि या २ घंटा २४ मिनट पहले से ऊपाःकाल लग जाता है। यहां रात्रिमान का १५वां भाग लेना चाहिए।
अभिजित्काल
दिनमान का आठवां मुहूर्त अभिजित कहलाता है। यह मध्यान्हकाल से २४ मिनट पहले से २४ मिनट बाद तक होता है।
प्रदोषकाल
प्रदोषो अस्तमया दूर्ध्व, घटिका द्वयमिष्यते। (माधव)
सूर्यास्त से एक मुहूर्त यानि दो घटि अथवा ४८ मिनट तक प्रदोषकाल होता है। मतान्तर से तीन घटि तक भी प्रदोषकाल कहा गया है।
निशीथकाल
ठीक अर्धरात्रि का समय निशीथकाल कहलाता है। रात्रिमान का आठवां मुहूर्त निशीथ कहलाता है। यह अर्धरात्रि से २४ मिनट पहले से २४ मिनट बाद तक होता है।
पूजन अर्चन काल
पूर्वान्हो दैविकः कालो मध्यान्हश्चापि मानुषः।
अपरान्हः पितृणां तु मायान्हो राक्षसः स्मृतः॥ (महिर्षी व्यास)
प्रातः काल देवों का, मध्यान्ह मनुष्यों का, अपरान्ह पितरों का एवं सायंकाल राक्षसों का समय है। अतः यथ योग्य काल में दानादि से यथोचित फल मिलता है।
कर्म काल तिथि
कर्मणो यस्य यः कालस्तत्कालव्यापिनीतिथिः।
तया कर्मणि कुर्वीत ह्रासवृद्धि न कारणम्॥
(वृद्ध याज्ञवल्यक्य)
जिस व्रत उपवास या पर्व संबंधी कर्म के लिए शास्त्रों में जो समय नियत है, उस समय यदि व्रत की तिथि मौजद हो तो उसी दिन व्रत संबंधी कार्य ठीक समय पर करना चाहिए।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष संस्थान)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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