“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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मुहूर्त निर्णय
चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक, एक वर्ष में चार नवरात्र पर्व होते हैं।
प्रतिपत्सम्मुखी कार्या या भवेदापराविकी ॥१॥ (स्कन्द पुराण)
भावार्थ – नवरात्र प्रतिपदा सम्मुखी शुभ होती है।
अमायुक्ता न कर्तव्या प्रतिपत् पूजने मम ॥२॥ (देवी भागवत)
भावार्थ – जिस दिन अमावस्या के बाद प्रतिपदा हो अतः उस दिन प्रतिपदा अमावस्या युक्ता होने से देवी पूजन प्रारंभ नहीं करना चाहिए।
भास्करोदयामारभ्य यावत्तु दश नाडिकाः । प्रातःकाल इति प्रोक्तः स्थापनारोपणादिषु ॥३॥ (विष्णुधर्म)
भावार्थ – सूर्योदय से दश घटी (चार घंटा) तक प्रातःकाल में घट स्थापना शुभ होती है।
सम्पूर्णा प्रतिपद्धयेव चित्रायुक्ता यदा भवेत् । वैधृत्या वापि युक्ता स्यात् तदा माध्यन्दिने रवौ ॥ अभिजितु मुहूर्त यत् तत्र स्थापनमिष्यते ॥४॥ (रुद्रयामल)
भावार्थ – यदि प्रातः काल में चित्रा नक्षत्र या वैधृति योग हो तो उस समय घट स्थापना न करें। यदि उस दिन चित्रा नक्षत्र या वैधृति योग रात्रि तक रहे तो अभिजित मुहूर्त में स्थापन करें।
प्रातरावाहयेद् देवीं प्रातरेव प्रवेशयेत् ।
प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसर्जयेत ॥५॥
(देवी पुराण)
भावार्थ – देवी का आवाहन, प्रवेशन, नित्य पूजन और विसर्जन ये सब प्रातः काल में करना चाहिए।
यत्रक्षयवशादमायुक्तैवलभ्यते नद्वितीयायुता ॥६॥
(तिथि चिंतामणि)
भावार्थ – यदि प्रतिपदा तिथि क्षय हो तो अमावस्या युक्ता प्रतिपदा को ही घट स्थापना करना चाहिए।
दिनद्वये तद्व्याप्तौ अव्याप्तौ वा पूर्वेव ग्राह्या ॥७॥
(निर्णय सिन्धु)
भावार्थ – यदि प्रथमा तिथि वृद्धि हो तो प्रथम दिन घट स्थापन करना चाहिए।
घटस्थापना के नियम
• सूर्योदय के बाद यदि एक भी मुहूर्त प्रतिपदा में पड़ रहा है तो उसी दिन की सुबह से ही नवरात्रि शुरू होगी और कलश स्थापना या घटस्थापना की जाएगी।
• यदि सूर्योदय के बाद प्रतिपदा एक मुहूर्त से कम हो और बाक़ी किसी दिन न हो, तब ऐसी स्थिति में अमायुक्त प्रतिपदा को पहला दिन माना जाएगा।
• किसी दूसरी स्थिति में अमायुक्त प्रतिपदा में चैत्र नवरात्रि आरंभ करना निषिद्ध माना गया है।
• यदि प्रतिपदा दो दिनों के सूर्योदय में पड़ रही है तो पहले दिन का मान्य होगा, दूसरे दिन त्यौहार की शुरुआत करना वर्जित है।
• यदि पहले दिन देवी चण्डिका की पूजा करनी हो तो अमायुक्त प्रतिपदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में दूसरे दिन में पड़ रही प्रतिपदा मान्य होगी।
• घटस्थापना का सबसे उत्तम समय दिन का पहला एक तिहाई हिस्सा है।
• किसी दूसरी स्थिति में अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम माना गया है।
• किचित्रा नक्षत्र और वैधृति योग की अवधि में घटस्थापना करने से बचना चाहिए, पर यह समय पूरी तरह से वर्जित नहीं है।
• किसी भी परिस्थिति में घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा तिथि के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
• चैत्र नवरात्रि में प्रतिपदा की सुबह द्वि-स्वभाव लग्न मीन होता है, इस अवधि में भी घटस्थापना करना शुभ माना गया है।
• घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र हैं: पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्त, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु।
• सूर्योदय होने से १६ घटी के बाद घटस्थापना का कार्य वर्जित है। दूसरे शब्दों में कहें तो घटस्थापना हिन्दू समय के अनुसार प्रतिपदा के दिन के मध्य से पहले होनी चाहिए।
घटस्थापना – सरल विधि एवं आवश्यक सामग्री
श्रीफल, हल्दी चूर्ण, कुंकुम, अबीर, गुलाल, सिन्दूर, चन्दन, सुपारी (समूची), हल्दी (समूची),
चौड़े मुँह वाला मिट्टी का एक बर्तन, पवित्र स्थान की मिट्टी, सप्तधान्य, कलश, जल (संभव हो तो गंगाजल), कलावा/मौली, पंचपल्लव, या आम या अशोक के पत्ते (पल्लव), अक्षत (साबुत चावल), लाल वस्त्र, पुष्प और पुष्पमाला, मिष्ठान्न इत्यादि।
• पवित्र मिट्टी को चौड़े मुँह वाले मिट्टी के बर्तन में रखकर उसमें सप्तधान्य बोएँ।
• अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग में कलावा बाँधें।
• आम या अशोक के पल्लव को कलश के ऊपर रखें।
• अब श्रीफल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें।
• श्रीफल में भी कलावा बाँधे।
• घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान करते हैं।
(वैदिक विधि द्वारा घट-स्थापन हेतु विद्वान ब्राह्मण का भी सहयोग ले सकते हैं)
नवरात्रि व्रत – पारण विधि
नवरात्रि व्रत पारण दो अलग-अलग तिथि पर किया जाता है। कई बार लोग नवरात्रि व्रत पारण महाष्टमी तिथि पर करते हैं वहीं कुछ लोग नवरात्रि व्रत पारण महा नवमी तिथि पर करते हैं।
आप महानवमी तिथि पर नवरात्रि व्रत पारण कर रहें हैं तो इस दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा करें तथा उन्हें भोग लगाएं। पूजा करने के बाद नौ कन्याओं तथा एक बटुक बालक को भोजन करवाएं बटुक पूजन भैरव का स्वरूप माना जाता है और प्रसाद बांटें। कन्या पूजन करने के बाद आप अपना व्रत खोल सकते हैं। बहुत सारे लोग नवमी तिथि पर हवन करने के बाद व्रत पारण करते हैं। नवमी को हवन और कन्या पूजन करना अनिवार्य है।
व्रत परायण के साथ ही सबसे महत्वपूर्ण चीज होती है कलश विसर्जन। यह कार्य सभी को विधि विधान के साथ करना चाहिए। इससे मां भगवती का आशीर्वाद आपको प्राप्त होगा। घर में सुख शांति और समृद्धि होगी।
यज्ञादि करने के बाद आप कन्या भोजन कराएं। यथाशक्ति कन्याओं को उपहार दें। कन्याओं में से एक कन्याओं को आप भगवती के नौ अवतारों का एकीकृत स्वरूप मानते हुए उनका विशिष्ट पूजन करें। दान दक्षिणा दें। पैर धोएं। कन्याओं को दुर्गा मानकर नौ दिन में आपने देवी निमित जो भी सामग्री या प्रसाद निकाला हो, वह उस कन्याओं को दे दें।
कन्या पूजन के बाद, देवी भगवती का सपिरवार ध्यान करें। क्षमा याचना करें कि हे देवी, हम मंत्र, पूजा, विधान कुछ नहीं जानते। अपनी सामर्थ्यानुसार और अल्पज्ञान से हमने आपके व्रत रखे और कन्या पूजन किया। हे भगवती, हमको, हमारे परिवार, कुल, को अपना आशीर्वाद प्रदान करो। आप इस घर में सदैव विराजमान रहो। हमको सुख-समृद्धि, विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, यश प्रदान करो।
इसके बाद देवी सूक्तम का पाठ करते हुए यह मंत्र विशेष रूप से पढ़ें…या देवि सर्वभूतेषु शांति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:। ( एक अन्य मंत्र में शांति के स्थान पर लक्ष्मी का प्रयोग होगा।)। इन मंत्रों को ११ बार पढ़ें।
कलश विसर्जन
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र को जपते हुए कलश उठाइये। नारियल को अपने माथे पर लगाइये और नारियल-चुनरी आदि अपनी मां, पत्नी, बहन की गोद में रखिए। इसके बाद कलश लेकर आम के पत्तों से कलश के जल को अपने घर के चारों कोनों पर छिड़किए। ध्यान रहे, सबसे पहले रसोईघर में छिड़कें। यहां लक्ष्मी जी का वास है। इसके बाद, अपने शयन कक्ष में, अध्ययन कक्ष में, अन्य कक्षों में तथा अंत में घर के प्रवेश द्वार पर छिड़किए। बाथरूम में जल नहीं छिड़कना है।
-कलश के जल को तुलसी के गमले में अर्पण कर दें। जो सिक्का कलश में डाला हो, उसको अपनी तिजोरी में रख लें। उसको खर्च न करें।
रक्षा कवच सूत्र अवश्य बाँधना चाहिए
कलश और अखंड ज्योति के दीपक पर बंधे कलावे को आप अपनी बाजू में बांध सकते हैं और गले में पहन सकते हैं। यह देवी का सिद्ध रक्षाकवच होगा जो आपके लिए काम करेगा। कवच सूत्र बांधते हुए यह मन्त्र पढें
येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल।
यह सूत्र घर के सब सदस्य पहन सकते हैं। इस तरह नवरात्र व्रत का परायण संपन्न हुआ। अष्टमी और नवमी से व्रत का परायण करने वाले इस विधि से कलश विसर्जन करेंगे तो उसका लाभ होगा। अष्टमी या नवमी तिथि को व्रत परायण करने वालों को चाहिए कि अखंड ज्योति को विजयदशमी के पूजन तक प्रज्जवलित रखें। विजयदशमी को भगवान राम ने अपराजिता देवी का पूजन किया था। अपराजिता देवी ही दुर्गा हैं।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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