“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉
चैत्र शुक्ल नवम्यां पुनर्वसुयुतायां मध्यान्हे कर्क लग्न राश्यां श्री राम जन्मः।
भावार्थ – जिस दिन मध्यान्ह काल में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा एवं पुनर्वसु नक्षत्र हो उस समय रामनवमी व्रतोत्सवादि करना चाहिए।
अष्टम्या नवमी विद्धा कर्तव्या फलकांक्षिभिः।
न कुर्यान्नवमी तात दशम्या तु कदाचन॥ (दीक्षित)
भावार्थ – जिस दिन अष्टमी विद्धा अर्थात अष्टमी एवं नवमी का मेल हो उस दिन मध्यान्ह काल में राम नवमी पूजन-व्रत करना चाहिए, परन्तु जिस दिन नवमी में दशमी का वेध हो उस दिन वर्जित है।
दिन द्वये मध्यान्हव्यास अव्याप्तौ वा परा,
अष्टमी विद्धाया निषेधात्।
(धर्म सिन्धु)
भावार्थ – यदि चैत्र शुक्ल नवमी दोनों दिन मध्यान्हकाल में व्याप्त हो तो दूसरे दिन रामनवमी उत्सव मनाना चाहिए।
राम नवमी
भगवान राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। प्रत्येक वर्ष इस दिन को भगवान राम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था, जो कि हिन्दु काल गणना के अनुसार दिन के मध्य का समय होता है। राम नवमी पूजा अनुष्ठान आदि करने हेतु मध्याह्न का समय सर्वाधिक शुभ होता है। मध्याह्न काल छह घटी (लगभग २ घण्टे, २४ मिनट) तक रहता है। मध्याह्न के मध्य का समय श्री राम जी के जन्म के क्षण को दर्शाता है तथा मन्दिरों में इस क्षण को भगवान श्री राम के जन्म काल के रूप में मनाया जाता हैं। इस दौरान भगवान श्री राम के नाम का जाप और जन्मोत्सव अपने चरम पर होता है।
पश्चिमी घड़ी तथा ग्रेगोरियन कैलेण्डर के व्यापक उपयोग के कारण लोग दोपहर के १२ बजे के समय को मध्याह्न काल मानने लगे हैं। यह समय सही हो सकता था, यदि क्रमशः सूर्योदय एवं सूर्यास्त सटीक प्रातः ६ बजे तथा साँयकाल ६ बजे होता। किन्तु अधिकांश स्थानों पर सूर्योदय एवं सूर्यास्त का समय छह बजे से भिन्न समय पर होता है। इसीलिये, अधिकांश भारतीय नगरों के लिये भगवान राम का जन्मोत्सव मनाने का सर्वोत्तम समय सुबह ११ बजे से दोपहर १ बजे के मध्य आता है।
अयोध्या भगवान श्री राम का जन्मस्थान है तथा यहाँ मनाया जाने वाला राम नवमी समारोह अद्भुत एवं विलक्षण होता है। राम नवमी के अवसर पर दूर-दूर से श्रद्धालु अयोध्या आते हैं। सरयू नदी में पवित्र स्नान करने के पश्चात् भक्तगण श्री राम जी के जन्मोत्सव में भाग लेने हेतु राम मन्दिर जाते हैं।
राम नवमी के समय आठ प्रहर उपवास करने का सुझाव दिया जाता है। जिसका अर्थ है कि, भक्तों को सूर्योदय से सूर्योदय तक व्रत पालन करना चाहिये।
राम नवमी का व्रत तीन भिन्न-भिन्न प्रकार से मनाया जा सकता है।
• नैमित्तिक – जिसे बिना किसी कारण के किया जाता है।
• नित्य – जिसे जीवन पर्यन्त बिना किसी कामना एवं इच्छा के किया जाता है।
• काम्य – जिसे किसी विशेष मनोरथ की पूर्ति हेतु किया जाता है।
राम नवमी को भगवान श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। राम भक्तों के लिये यह एक बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है और इस अवसर पर भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं एवं विभिन्न अनुष्ठानों के साथ प्रभु श्री राम की पूजा करते हैं। भगवान श्री राम को भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है।
कुछ स्थानों पर, मुख्यतः उत्तर भारत में, यह दिन चैत्र नवरात्रि के अन्तिम दिन के साथ मेल खाता है। बहुत से लोग राम नवमी पर हवन का आयोजन करते हैं और इसी दिन चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों के उत्सव का समापन करते हैं। इसीलिये चैत्र माह के दौरान नवरात्रि पूजा को राम नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है।
राम नवमी का प्रारम्भ एवम् महत्व
राम नवमी भगवान श्री राम के युग के बाद से मनायी जा रही है। हिन्दु सदियों से राम नवमी मना रहे हैं और विगत रहे कि भगवान श्री राम के जन्मोत्सव के सटीक वर्षों की गणना करने के लिये कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं रखा गया है। हालाँकि, वैदिक समय गणना के अनुसार, भगवान श्री राम का जन्म लगभग दस लाख वर्ष पहले त्रेता युग में हुआ था।
राम नवमी के देवी-देवता
भगवान श्री राम इस त्यौहार के मुख्य देवता हैं जिनकी राम नवमी के शुभ अवसर पर पूजा की जाती है। राम नवमी के शुभ दिन पर भगवान श्री राम के साथ उनकी माता अर्थात माता कौशल्या, भगवान श्री राम के पिता अर्थात राजा दशरथ, भगवान श्री राम की पत्नी अर्थात देवी सीता, भगवान श्री राम के तीन अनुज अर्थात भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न और प्रभु श्री राम के महान भक्त श्री हनुमान की भी पूजा की जाती है।
राम नवमी दिनाँक और समय
अमान्त के साथ-साथ पूर्णिमान्त हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार –
चैत्र (पहला माह) की शुक्ल पक्ष नवमी (नौवाँ दिन)
राम नवमी पर अनुष्ठान
• एक दिन का उपवास
• भगवान श्री राम की पूजा
• महाकाव्य रामायण या नाम रामायणम् का पाठ और श्रवण करना
• भगवान श्री राम और देवी सीता का औपचारिक विवाह करना
• राम नवमी शोभायात्रा का आयोजन
• अगले दिन उपवास के पारण से पहले हवन का आयोजन करना
• राम नवमी की क्षेत्रीय विविधतायें
• राम नवमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है और इसे सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है।
भगवान राम
भगवान राम, अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। महाराजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं, जिनका नाम कौशल्या, सुमित्रा एवं कैकेयी था।
महाराजा दशरथ ने ऋष्यशृङ्ग (शृङ्गी ऋषि) की सहायता से अश्वमेध एवं पुत्रकामेष्टि यज्ञ सम्पन्न किया था। यज्ञ के समय यज्ञ कुण्ड से दिव्याग्नि प्रकट हुयी तथा उसने दशरथ को एक खीर का पात्र प्रदान किया। दिव्याग्नि ने पुत्र प्राप्ति हेतु राजा दशरथ को वह खीर अपनी रानियों में वितरित करने को कहा।
कौशल्या ने आधी खीर का सेवन किया, सुमित्रा ने खीर के चतुर्थ भाग का सेवन किया तथा कैकेयी ने भी उस खीर के कुछ भाग का सेवन कर उसे सुमित्रा को दे दिया जिन्होंने एक बार पुनः उसका सेवन कर लिया। फलस्वरूप कौशल्या ने भगवान राम, कैकेयी ने भरत तथा सुमित्रा ने लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न नामक जुड़वाँ सन्तानों को जन्म दिया था।
भगवान राम, महाराजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र तथा भरत उनसे छोटे पुत्र थे। मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मण व शत्रुघ्न का जन्म भगवान राम के जन्म के दो दिवस पश्चात् हुआ था। भगवान राम के जन्मदिवस को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है, जो हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में आती है।
भगवान राम एवं भरत श्याम वर्ण के थे, जबकि लक्ष्मण व शत्रुघ्न गौर वर्ण के थे। अधिकांशतः भगवान राम के स्वरूप को भगवान कृष्ण के समान ही नीलवर्ण वाला दर्शाया जाता है। भगवान श्री राम धनुष तथा पीठ पर बाणों से भरा तरकस धारण करते हैं।
रामायण के कुछ संस्करणों के अनुसार, भगवान राम की एक ज्येष्ठ बहन भी थीं। महाराजा दशरथ एवं उनकी प्रथम पत्नी कौशल्या की एक पुत्री थी। उनका नाम शान्ता था तथा उन्हें महाराजा रोमपाद ने गोद ले लिया था। कालान्तर में शान्ता का विवाह ऋष्यशृङ्ग के साथ हो गया था। महाराजा दशरथ की पुत्री का जन्म उनकी अन्य दो रानियों सुमित्रा एवं कैकेयी के साथ विवाह से पूर्व हुआ था।
महाराजा के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण स्वभाविक रूप से भगवान राम ही अयोध्या के सिँहासन के उत्तराधिकारी थे। किन्तु कैकेयी अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने की इच्छुक थीं। पूर्व में महाराजा दशरथ ने कैकेयी को उनके दो मनोवाञ्छित वरदानों की पूर्ति का वचन दिया था। वचन पालन हेतु राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम को चौदह वर्ष का वनवास दे दिया।
अयोध्या से जाते समय भगवान राम के साथ उनकी अर्धांगिनी देवी सीता एवं अनुज लक्ष्मण ने भी उनके साथ वनवास पर जाने का निर्णय लिया। वनवास काल में भगवान राम ने दैत्यराज रावण का वध कर दिया, जिसने छलपूर्वक साधु के भेष में देवी सीता का अपहरण किया था। जिस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था उस दिन को विजयादशमी अथवा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
चौदह वर्ष के पश्चात् भगवान राम पुनः अयोध्या आये तथा राजपाठ ग्रहण किया। हिन्दुओं का सर्वाधिक लोकप्रिय पर्व दीवाली, भगवान राम के वनवास पूर्ण कर पुनः अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
भगवान राम के लव एवं कुश नामक दो पुत्र थे, जिनका जन्म भगवान राम द्वारा देवी सीता के त्याग के उपरान्त हुआ था। भगवान राम एक आदर्श राजा थे तथा उनके शासन को वर्तमान में भी राम राज्य के रूप में जाना जाता है। अयोध्या पर अनेक वर्षों तक शासन करने के पश्चात् भगवान राम ने अपने भ्राताओं सहित सरयू नदी में जल समाधि ग्रहण कर ली थी।
राम नवमी उत्तर प्रदेश में
भगवान श्री राम का जन्मोत्सव मनाने के लिये अयोध्या सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। श्री राम नवमी पर पवित्र सरयू नदी में स्नान करना अत्यन्त शुभ माना जाता है। अयोध्या में प्रसिद्ध कनक भवन मन्दिर के दर्शन करने से पहले हजारों भक्त सरयू नदी में श्रद्धापूर्वक डुबकी लगाते हैं। भगवान श्री राम का जन्मस्थान होने के कारण राम नवमी के अवसर पर अयोध्या उसी प्रकार महत्वपूर्ण है जैसे श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मथुरा महत्वपूर्ण है।
राम नवमी आन्ध्र प्रदेश में
तिरुमाला में राम नवमी को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) का प्रशासन राम नवमी के महत्वपूर्ण दिन श्री राम नवमी अस्थानम का धार्मिक आयोजन किया जाता है।
राम नवमी तेलंगाना में
तेलंगाना में भद्राचलम मन्दिर भगवान श्री राम और देवी सीता को समर्पित है। श्री राम नवमी के शुभ दिवस पर भगवान श्री राम और देवी सीता के विवाह की वर्षगाँठ को प्रति वर्ष बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
इस आयोजन को श्री राम नवमी कल्याणम उत्सव के नाम से जाना जाता है।
राम नवमी तमिलनाडु में
दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु में, भगवान श्री राम के भक्त कल्याणोत्सवम का आयोजन करते हैं। कल्याणोत्सवम के दौरान, भगवान श्री राम और देवी सीता का प्रतीकात्मक विवाह समारोह आयोजित किया जाता है तथा देवताओं की एक समारोहपूर्ण शोभायात्रा निकाली जाती है।
दक्षिण भारतीय मन्दिरों में
राम नवमी के शुभ दिन पर पनकम नामक एक विशेष व्यञ्जन तैयार किया जाता है। अदरक, गुड़, काली मिर्च और इलायची से बना मीठा तरल व्यञ्जन बनाया जाता है जिसे पनकम कहते हैं। पनकम को प्राकृतिक शरीर शीतलक के रूप में जाना जाता है और उत्तर भारतीय मन्दिरों में गंगाजल की भांति भक्तों की अंजली में परोसा जाता है।
राम नवमी इस्कॉन में
राम नवमी का दिन इस्कॉन मन्दिरों और उसके अनुयायियों के लिये भी बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकांश इस्कॉन मन्दिर इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित करके श्री राम नवमी मनाते हैं। भगवान श्री राम और देवी सीता की शोभायात्रा, भगवान श्री राम का अभिषेक और हवन इत्यादि कुछ ऐसे अनुष्ठान हैं जो अधिकांश इस्कॉन मन्दिरों में सम्पन्न किये जाते हैं।
भगवान श्री राम, भगवान विष्णु के अवतार होने के कारण, इस्कॉन के अनुयायियों के लिये भगवान कृष्ण के समान महत्वपूर्ण हैं।
राम नवमी पर सार्वजनिक जीवन
श्री राम नवमी भारत में एक वैकल्पिक राजपत्रित अवकाश है। हालाँकि, उत्तर भारत के सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और महाविद्यालयों में राम नवमी के अवसर पर एक दिन का अवकाश हो सकता है।
॥ श्रीरस्तु ॥
❀꧁꧂❀
श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉
संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉