“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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पितृ स्त्रोत के लाभ :- सफेद पुष्प हाथ में लेकर अमावस के दिन दक्षिणाभिमुख बैठकर ५ बार पाठ करने से पितृदेव प्रसन्न होते हैं।
• १. परिवारिक सुख-सम्रद्धि एवँ शांति :- जिस परिवार में नित्य पितृ स्त्रोत का पाठ होता है , उस परिवार में किसी प्रकार की कोई कमी नही होती है । वहाँ पर सुख- सम्रद्धि में वृद्धि होती है एवं पारिवारिक रूप से शांति का माहौल रहता है।
• २. स्वस्थ एवँ प्रसन्न :- जिस परिवार में नित्य पितृ स्त्रोत का पाठ नियम से होता है उस परिवार के सभी सदस्य प्रसन्न एवँ स्वस्थ रहते है उनके कार्य स्वतः पूर्ण होने लगते है। उनके कार्य की समस्त बाधाएं अपने आप समाप्त हो जाती है।
• ३. पितृ दोष से मुक्ति :- जिस व्यक्ति के कुंडली मे पितृ दोष होता है और वह व्यक्ति नियमित रूप से पूर्ण विधि विधान से श्री पितृ स्त्रोत का पाठ करता है ,तो उसकी कुंडली मे पितृ दोष समाप्त होने लगता है। उसे उसके बुरे परिणाम मिलना बंद हो जाते है।
• ४. समस्त मनचाहे कार्य पूर्ण :- जिस भी व्यक्ति के जीवन मे किसी भी कार्य को करने से पहले कोई न कोई बाधा आ जाती है तो उस व्यक्ति के नित्य पितृ स्त्रोत का पाठ करने से वह बाधा समाप्त होने लगती है ओर उस व्यक्ति के समस्त कार्य पूर्ण होने लगते है। उस व्यक्ति की तरक्की निरन्तर बढ़ती रहती है।
• ५. नौकरी एवँ व्यापार में सफलता :- जो व्यक्ति नित्य श्री पितृ स्त्रोत का पाठ करता है तो वह व्यक्ति दिन प्रतिदिन नोकरी एवँ व्यापार में तरक्की की ओर अग्रसर होता रहता है। उसे व्यापार एवँ नोकरी में सफलता मिलती है । वह दिन प्रतिदिन उच्च पदों की ओर अग्रसर होता है।
अथ श्री पितृ स्तोत्रम्
अर्चितानामअमूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्य चक्षुषाम् ॥१॥
इन्द्रादिनां च नेतारो दक्ष मरीचयोस्तथा ।
सप्त ऋषिणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदाम् ॥२॥
मन्वादिनां मुनिन्द्राणां सूर्या चन्द्र मसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्सू दधावपि ॥३॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥४॥
देवर्षिणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलिः ॥५॥
प्रजापतेः कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरोभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥६॥
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचाक्षेषे ॥७॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥८॥
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृन्म्यहम् ।
अग्रि सोम मयं विश्वं यत एतद् शेषत: ॥९॥
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तयः ।
जगत्स्वरूपिणाश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणाः ॥१०॥
तेभ्यो अखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यत मानसः।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥११॥
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
पंडित हर्षित द्विवेदी
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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