“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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कार्तिक शुक्ल अरुणोदयव्यापिनी चतुर्दशी को ब्रह्म मुहूर्त में पूजन एवं व्रत करन चाहिए।
(तिथि निर्णयः)
बैकुण्ठ चतुर्दशी
हिन्दु कैलेण्डर में वैकुण्ठ चतुर्दशी एक पावन दिन है, जो कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पूर्व मनाया जाता है। कार्तिक माह की शुक्लपक्ष चतुर्दशी को भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव के भक्तों के लिये भी पवित्र दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन दोनों देवताओं की एक साथ पूजा-अर्चना की जाती है। अन्यथा, ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव एवं भगवान विष्णु का संयुक्त रूप से पूजन किया जाये। वाराणसी के अधिकांश मन्दिरों में वैकुण्ठ चतुर्दशी मनायी जाती है तथा यह देव दीवाली जैसे महत्वपूर्ण पर्व से एक दिन पूर्व आती है। वाराणसी के अतिरिक्त, ऋषिकेश, गया तथा महाराष्ट्र के अनेक नगरों भी वैकुण्ठ चतुर्दशी मनायी जाती है। शिवपुराण के अनुसार, कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के शुभ अवसर पर, भगवान श्री विष्णु भगवान शिव का पूजन करने हेतु वाराणसी गये थे। भगवान विष्णु ने एक सहस्र कमल पुष्पों द्वारा भगवान शिव का पूजन करने का सङ्कल्प ग्रहण किया था। भगवान शिव को कमल पुष्प अर्पित करते समय भगवान विष्णु को ज्ञात हुआ कि अन्तिम पुष्प वहाँ नहीं है। भगवान विष्णु के नेत्रों की तुलना कमल से की जाती है, अतः अपना पूजन-सङ्कल्प पूर्ण करने हेतु भगवान विष्णु ने अपना एक नेत्र निकाला एवं अन्तिम पुष्प के स्थान पर भगवान शिव को अर्पण कर दिया। भगवान विष्णु की यह भक्ति देखकर भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुये एवं उन्होंने भगवान विष्णु को उनका नेत्र तो वापस किया ही अपितु उन्हें सुदर्शन चक्र भी भेंट के रूप में दिया, जो भगवान विष्णु के सर्वाधिक शक्तिशाली एवं अलौकिक अस्त्रों में से एक माना जाता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी पर, भगवान विष्णु की पूजा निशीथकाल में की जाती है, जो हिन्दु दिन गणना के अनुसार मध्यरात्रि का समय है। इस दिव्य अवसर पर भक्तगण विष्णु सहस्रनाम, अतार्थ भगवान विष्णु के एक हजार नामों का पाठ करते हुये भगवान विष्णु को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करते हैं। हालाँकि वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु एवं भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है, परन्तु भक्त दिन के दो भिन्न-भिन्न समय पर दोनों का पूजन करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त निशीथकाल को वरीयता देते हैं जो हिन्दु मध्यरात्रि है, जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदयकाल को मान्यता देते हैं जो प्रातःकाल का समय होता है। शिवभक्तों के लिये, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदयकाल में स्नान करना अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। कार्तिक चतुर्दशी पर इस पवित्र स्नान को मणिकर्णिका स्नान के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र अवसर होता है, जब भगवान विष्णु को वाराणसी के प्रमुख शिव मन्दिर, काशी विश्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशेष आदर के साथ विराजमान किया जाता है। मान्यता है कि, इस दिन विश्वनाथ मन्दिर वैकुण्ठ के समान पवित्र हो जाता है। दोनों देवताओं की इस प्रकार विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है जैसे वे परस्पर एक-दूसरे की पूजा कर रहे हों। भगवान विष्णु शिव जी को तुलसीदल अर्पित करते हैं एवं भगवान शिव, विष्णु जी को बेलपत्र भेंट करते हैं।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
पंडित हर्षित द्विवेदी
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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