“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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यह मध्यान्हव्यापिनी पूर्णिमा ग्रहण करना चाहिए। ऐसा दो दिन होने पर दूसरे दिन ग्रहण करना चाहिए।
अथैव व्यास पूजोक्ता, तत्रा त्रिमुहूर्ता चेत्परैवेति सन्यास पद्धतौ।
त्रिमुहूर्ताधिकं ग्राह्यं पर्वश्रीर प्रमाणयो॥
(निर्णय सिन्धु)
अर्थात् – दिन आषाढ़ पूर्णिमा कम से कम तीन मुहूर्त (६ घटि) व्याप्त रहे उस दिन व्यास पूजा का विधान है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा दिवस के रूप में जाना जाता है। परम्परागत रूप से यह दिन गुरु पूजन के लिये निर्धारित है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शिष्य अपने गुरुओं की पूजा-अर्चना करते हैं। गुरु, अर्थात वह महापुरुष, जो आध्यात्मिक ज्ञान एवं शिक्षा द्वारा अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास की जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास, हिन्दु महाकाव्य महाभारत के रचयिता होने के साथ-साथ इसमें एक महत्वपूर्ण पात्र भी थे।
हिन्दु धर्म के कुछ महत्वपूर्ण गुरुओं में श्री आदि शंकराचार्य, श्री रामानुज आचार्य तथा श्री माधवाचार्य उल्लेखनीय हैं।
गुरु पूर्णिमा को बौद्धों द्वारा गौतम बुद्ध के सम्मान में भी मनाया जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि, गुरु पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध ने भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के सारनाथ नामक स्थान पर अपना प्रथम उपदेश दिया था।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
पंडित हर्षित द्विवेदी
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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