होलिका दहन

“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या पूर्णिमा फाल्गुनी सदा। निशागमे तु पूज्येत् होलिका सर्वतोमुखैः॥१॥ (नारदपुराण)

दिनद्वये प्रदोषे चेत् पूर्णा दाहः परेऽहनि॥२॥ (स्मृतिसार)

भद्रायां द्वेन कर्तव्येश्रावणी फाल्गुनी तथा॥३॥ (स्मृत्यन्तर)

तस्यांभद्रामुखंत्यक्त्वा पूज्याहोलानिशामुखे॥४॥ (पृथ्वीचन्द्रोदय)

पूर्णिमायाः पूर्वे भागे चतुर्धप्रहरस्य।
पंचघटीमध्ये भदाया मुखं ज्ञेयम्॥५॥
(ज्योतिर्निबन्ध)

पृथिव्यां यानि कार्यापि शुभानि ह्ययशुभानि च ।
तानिसर्वाणि सिद्धयन्तिविष्टिपुच्छे नसंसयः॥६॥ (आचार्य लल्ल)

प्रतिपद्भूतभद्रासु यार्चिता होलिका दिवा। संवत्सरं तु तद्राष्ट्रं पुरं दहति साद्भुताम्॥७॥ (चन्द्रप्रकश)

दिनार्धात् परतो या स्यात् फाल्गुनी पूर्णिमा यदि। रात्रौ भद्रावसाने तु होलिका तत्र पूजयेत्॥८॥
(भविष्यपुराण)

दिवाभद्रा यदा रात्रौ रात्रिभद्रा यदा दिवा।
साभद्राभद्रादायस्माद् भद्राकल्याणकारिणी॥९॥ (ज्योतिष तत्व)

ग्रहणशुद्धौ त्रात्वा कर्मणि ।
कुर्वीत श्रृतमन्नं विसर्जयेत् ॥१०॥
(स्मृतिकौस्तुभ)

स्पष्टमासविशेषाख्याविहितं वर्जयेन्मले॥११॥ (धर्मसार)

अर्थात् – यदि प्रदोषकाल में भद्रा हो तो मुख की घटी त्यागकर प्रदोषकाल में होलिका दहन करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन तीसरे चौथे प्रहर की आदि की ५ घटी भद्रा का मुख होता है, अतः उक्त समय में भद्रा के रहते होलिका दहन निषेध है। भद्रा का पुच्छकाल शुभ होता है। पूर्णिमा के दिन भद्रा का पुच्छकाल तीसरे प्रहर की अंतिम ३ घटी में होता है। (विशेष सूचना भद्रा के मुख-पुच्छ प्रकरण में प्रहर की गणना सूर्योदय से न होकर तिथि के आरंभकाल से होती है।) दिन के समय, प्रतिपदा को, चतुर्दशी को या भद्राकाल में होलिका दहन करने पर वहां के राज्य, नगर और नागरिक विचित्र उत्पातों से एक वर्ष में नष्ट हो जाते हैं। यदि दोपहर पश्चात पूर्णिमा प्रारंभ हुई हो अर्ध रात्रि तक भद्रा रहती है अतः तत्पश्चात सूर्योदय के पहले तक होलिका दहन करना चाहिए। यदि पहले दिन रात भर भद्रा रहे और दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा मौजूद हो उस समय चंद्रग्रहण हो तो पहले दिन ही सूर्यास्त के बाद होलिका दहन कर देना चाहिए, क्योंकि पूर्णिमा में पूर्वार्ध की भद्रा रात्रिकाल में शुभ कही गई है। यदि दूसरे दिन प्रदोष के समय पूर्णिमा हो और भद्राकाल समाप्त होने वाला हो, परन्तु चंद्रग्रहण हो तो ग्रहण के शुद्धिकाल उपरांत स्नान करके होलिका दहन कर देना चाहिए। यदि फाल्गुन अधिमास हो तो शुद्ध मास (दूसरे फाल्गुन) की पूर्णिमा को होलिका दहन करना चाहिए।

हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। भद्रा, जो पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में व्याप्त होती है, के समय होलिका पूजा और होलिका दहन नहीं करना चाहिये। सभी शुभ कार्य भद्रा में वर्जित हैं।

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये – भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये। होलिका दहन का मुहूर्त किसी त्यौहार के मुहूर्त से ज्यादा महवपूर्ण और आवश्यक है। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर न की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वञ्चित होना पड़ेगा परन्तु होलिका दहन की पूजा अगर अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह दुर्भाग्य और पीड़ा देती है। इस पृष्ठ पर दिया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित है। हम होलिका दहन के श्रेष्ठ मुहूर्त को प्रदान कराते हैं। इस पृष्ठ पर दिया मुहूर्त हमेशा भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता है क्योंकि भद्रा मुख में होलिका दहन सर्वसम्मति से वर्जित है। होलिका दहन के साथ-साथ इस पृष्ठ पर भद्रा मुख और भद्रा पूँछ का समय भी दिया गया है जिससे भद्रा मुख में होलिका दहन से बचा जा सके। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है। रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता है, होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती है और इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता है।

॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
पंडित हर्षित द्विवेदी
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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Pandit Harshit Dwivedi Ji Maharaj is a highly educated and simple, true and meaningful Astrology, Vastu Consultant, who is always striving to take Sanatan Vedic Dharma and religious traditions and divine power to the highest pinnacle of progress.

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