“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को गोदुग्ध की खीर का अर्धरात्रि के समय आराध्यदेव को भोग लगाया जाता है व अगले दिन उसे प्रसाद रूप में उसका भोजन किया जाता है। शरद पूर्णिमा का कर्मकाल रात्रि है अतः – कर्मणो यस्य यः कालस्तत्कालव्यापिनीतिथिः।
सूत्र के अनुसार इसमें प्रदोष एवं निशीथ दोनों में होने वाली पूर्णिमा ली जाती है। यदि पहले दिन निशीथव्यापिनी हो और दूसरे दिन प्रदोषव्यापिनी न हो तो पहले दिन व्रत करना चाहिए।
शरद पूर्णिमा, हिन्दु कैलेण्डर में सबसे प्रसिद्ध पूर्णिमाओं में से एक है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा वर्ष में एकमात्र ऐसा दिन होता है जब चन्द्रमा सभी सोलह कलाओं के साथ निकलता है। हिन्दु धर्म में, मानव का प्रत्येक गुण किसी न किसी कला से जुड़ा होता है और यह माना जाता है कि सोलह विभिन्न कलाओं का संयोजन एक आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करता है। योगिराज श्री कृष्ण को सोलह कलाओं से परिपूर्ण अवतार माना जाता है और भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है। जबकि भगवान श्री राम को केवल बारह कलाओं का संयोजन माना जाता है। अतः शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र देव की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। नवविवाहित सौभाग्यवती स्त्रियाँ, जो वर्ष की प्रत्येक पूर्णिमासी को उपवास करने का संकल्प लेती हैं, वे शरद पूर्णिमा के दिन से उपवास प्रारम्भ करती हैं। गुजरात में शरद पूर्णिमा को शरद पूनम के नाम से अधिक मान्यता प्राप्त है। इस दिन चन्द्रमा न केवल सभी सोलह कलाओं के साथ चमकता है, बल्कि शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणों में उपचार के कुछ गुण भी होते हैं जो शरीर और आत्मा को सकारात्मक उर्जा प्रदान करते हैं। इसके साथ ही यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणें अमृतमयी होती हैं। इसीलिये इस दिव्य संयोग का लाभ उठाने के लिये, पारम्परिक रूप से शरद पूर्णिमा के दिन, गाय के दूध से बनी खीर और नेत्रों की ज्योति में वृद्धि करने वाली एक विशेष मिठाई (ब्रज भाषा में इसे पाग कहते हैं) को बनाया जाता है और पूरी रात चन्द्रमा की किरणों के समक्ष रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा की किरणों से इस मिठाई में अमृत जैसे औषधीय गुण आ जाते हैं। प्रातःकाल, इस खीर का सेवन किया जाता है और परिवार के सदस्यों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है तथा नेत्रों की ज्योति के लिये लाभदायक मिठाई का कई दिनों तक औषधि की भाँति सेवन किया जाता है। बृज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को ही रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान श्री कृष्ण ने दिव्य प्रेम का नृत्य महा-रास (आध्यात्मिक/अलौकिक प्रेम का नृत्य) किया था। शरद पूर्णिमा की रात्रि में, श्री कृष्ण की बाँसुरी का दिव्य संगीत सुनकर, वृन्दावन की गोपियाँ अपने घरों और परिवारों से दूर रात भर श्री कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिये जंगल में चली गयीं। यह वह रात्रि थी जब योगीराज श्री कृष्ण ने प्रत्येक गोपी के साथ प्रथक-प्रथक कृष्ण बनकर प्रथक-प्रथक नृत्य किया। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने अलौकिक रूप से इस रात्रि के समय को भगवान ब्रह्मा की एक रात्रि के बराबर कर दिया और ब्रह्मा की एक रात्रि पृथ्वी या मनुष्यों के अरबों वर्षों के बराबर थी। भारत के कई क्षेत्रों में शरद पूर्णिमा को कोजागरा पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है, इस दिन अर्थात कोजागरा पूर्णिमा को पूरे दिन उपवास/व्रत रखा जाता है। कोजागरा व्रत को कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
पंडित हर्षित द्विवेदी
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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