“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
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अष्टौ तान्य व्रतघ्नानि, आपो मूलं फलं पयः।
हविर्बाम्हण काम्या च, गुरोर्वचनमौषधम्॥ (पद्मपुराण)
अर्थात् –जल, फल, मूल, दूध, हवन, ब्राह्मण की इच्छा, औषधी और गुरु (पूज्य जनों) के वचन इन आठ से व्रत भंग नहीं होता है।
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय क्रमांक १४५ के अनुसार, भगवान शिव माता पार्वती को व्रत धारण करने की विधि और लाभ बतलाते हैं,
सबसे पहले मनुष्य प्रातःकाल में विधिपूर्वक स्नान करके स्वयं ही अपने आपको पञ्च–महाभूत, चन्द्रमा, सूर्य, दोनों काल की संध्या, धर्म, यम तथा पितरों की सेवा में निवेदन करके व्रत लेकर धर्माचरण करें।
अपने व्रत को मृत्यु पर्यन्त निभावे अथवा समय की सीमा बांधकर उतने समय तक उसका निर्वाह करें। शाक तथा फल आदि का आहार करके व्रत करें। उस समय ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिए। अपना हित चाहने वाले मनुष्य को दुग्ध आदि अन्य बहुत-सी वस्तुओं में से किसी एक का उपयोग करके व्रत का पालन करना चाहिये।
विद्वानों को उचित है कि वे अपने व्रत को भंग न होने दें। सब प्रकार से उसकी रक्षा करें। व्रत भंग करने से महान पाप होता है, लेकिन औषधि के लिये, अनजाने में, गुरुजनों की आज्ञा से व्रत भंग हो जाए तो वह दूषित नहीं होता। व्रत की समाप्ति के समय मनुष्य को भगवान की पूजा करनी चाहिए इससे उसको अपने कार्य में सफलता मिलती है।
व्रत के शौच विधि के लिए महादेव बोलते हैं की शौच दो प्रकार के हैं
एक बाह्य (बाहरी) शौच, दूसरा आभ्यन्तर शौच, जिसे पहले मानसिक सुकृत बताया गया है (मन में परमात्मा के अलावा और किसी नकारात्मक सोच को फलने नहीं दें) उसी को यहां आभ्यन्तर शौच कहा गया है। सदा ही शुद्ध आहार ग्रहण करें और शरीर को भी शुद्ध रखें। निर्मल जल को हाथ में लेकर उसके द्वारा तीन-तीन बार आचमन करना श्रेष्ठ माना गया है। जो शुद्ध जल हो उसी का स्पर्श करें और उसी से हाथ-मुंह घोकर कुल्ला करें और स्नान करें।
लोकाचार परंपरा अनुसार मन में कोई भी विकृति ना लाएं, किसी के लिए द्वेष ना रखें, झूठ ना बोले, अहिंसा ना करें, किसी को अप्रिय ना बोलें, सिर्फ और सिर्फ परमात्मा पर ध्यान केंद्रित करें तभी आपका व्रत सफल होगा।
व्रत रखने का वैज्ञानिक पक्ष
हम आज के युग के अनुसार सोचते हैं। हम प्रत्येक माह के ३० दिनों तक तामसिक भोजन का ही आहार ग्रहण करते हैं, जिसके कारण शारीर रोग ग्रस्त होता है और हमारी आयु भी कम होती है। प्रत्येक माह में दो एकादशी आती है, मासिक शिवरात्रि आती है और भी कई पर्व हर माह में जुड़े होते हैं। इसलिए ऋषियों ने बहुत ही अच्छा और सरल उपाय बताया है अपनी आयु में वृद्धि लाने का और अध्यात्म की ओर रुचि बढ़ाने का, आप जितने व्रत रखेंगे उतना ही आपका शरीर सात्विक होगा।
क्योंकि व्रत के समय हम कंद-मूल आदि ही खाते हैं जोकि हमारे शरीर के लिए पौष्टिक होते हैं, वह तामसिक भोजन नहीं होता है। जितने भी पर्व है उसमें व्रत रख लिया तो आपके लिए वास्तव में एक तरह से आपकी शुद्ध हो जाती है। शरीर को भी विषहरण करना जरूरी है, व्रत उसके लिए सबसे अच्छा उपाय है। व्रत रखने से आपकी आयु भी बढ़ती है और तो और आपके अध्यात्म दर्शन की भी वृद्धि होती है।
॥ श्रीरस्तु ॥
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श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
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संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष संस्थान)
संपर्क सूत्र – 07089434899
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