हरि-हर-हरात्मक-700x233 "हरि हर हरात्मक" ज्योतिष संस्थान के नाम का महत्व

नमः सर्वात्मने तुभ्यं नमस्ते भूतिदायक ।
नमस्ते वामदेवाय महादेवाय ते नमः॥

शिवाय विष्णुरूपाय शिवरूपाय विष्णवे शिवस्य हृदयं विष्णुर्विष्णोश्च हृदयं शिवः

महाभारत के हरिवंश पर्व में भगवान शिव के निर्गुण और सगुण दोनों ही रूपों की बड़ी स्पष्टता से व्याख्या की गई है। भगवान श्री हरि विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं ने भगवान शिव को सर्वव्यापी, परम तत्व, ब्रह्म, जगत की सृष्टि, स्थिति, उत्पत्ति तथा प्रलय का कारण बतलाया है।
निर्गुणरूप में वे परम तत्व, ब्रह्म, अमूर्त, प्रणवस्वरूप, योगियों के ध्येय महायोगी, तथा आत्मस्वरूप हैं। सगुणरूप में वे सर्वेश्वर, ब्रह्मा, विष्णु एवं रुद्ररूप, विश्वरूप, अनंत, अनादि, अजन्मा, सृष्टिकर्ता, पालन एवं संहार कर्ता, परमात्मा, समस्त देवताओं के अधिपति, यज्ञ एवं वेदस्वरूप, कर्मफलदाता, चराचर परात्पर गुरु, दयालु, कृपालु, कल्याणकारी, भक्तवत्सल वरदाता, मुक्ति भुक्ति प्रदाता, प्रकृति के स्वामी, सर्वदेवमय हैं।

शिवाय विष्णुरूपाय विष्णवे शिवरूपिणे।
यथान्तरं न पश्यामि……..॥
अनादि मध्यनि धन मेतद्ऽक्षरमव्यम्।
तदेव ते प्रवक्ष्यामि रूपं हरिहरात्मकम्॥

हरि-हर-भगवान-700x700 "हरि हर हरात्मक" ज्योतिष संस्थान के नाम का महत्व

जो विष्णु हैं वे ही रुद्र हैं और जो रुद्र हैं वे ही ब्रह्मा हैं। इनका मूल स्वरूप तो एक ही ब्रह्म रूप है परन्तु कार्यभेद से सृष्टि के कार्य संचालन हेतु अद्वैत ब्रह्म ही क्रमशः रूद्र, विष्णु,और ब्रह्मा के रूप में त्रिदेवों के रूप में सर्वविदित हैं।

और अद्वैतब्रह्म, स्वयंभू “हर” हैं। इस कारण मैंने मेरे संस्थान का नाम “हरि हर हरात्मक” रखा है क्योंकि रुद्र, विष्णु, और ब्रह्मा ही समस्त चराचर जगत के कर्ता, संहारक, शुभकारक, तथा प्रभावशाली महेश्वर हैं। एक ही परमेश्वर अनेक रूपों में व्यक्त होकर समस्त जगत में विचरते रहते हैं।
अनादिकाल से ही परब्रह्म परमात्मा आदियोगी, सर्वदेवमय शिव अर्थात “हर” ही भगवान विष्णु, भगवान शंकर, दोनों के रूप में हरिहरस्वरूप, हरिहरात्मकस्वरूप एकत्व को प्राप्त हैं।

सनातन से परिपूर्ण अद्वैत ब्रह्म ही क्रमशः रूद्र, विष्णु,और ब्रह्मा के रूप में त्रिदेवों के रूप में सर्वविदित हैं। और अद्वैतब्रह्म, स्वयंभू “हर” हैं। और हरिहरात्मक स्वरूप , अद्वैत ब्रह्म के विभक्त त्रिदेवों में से हरि और हर का एकत्व रूप है, और यह एकत्व रूप हरिहरात्मक, “अद्वैत ब्रह्म हर” से अभिन्न नहीं है। और इसी कारण मैने हरिहरात्मक के मध्य एक और “हर” लगाकर अदृश्य मूल अद्वैत ब्रह्म को उजागर करते हुए संस्थान को “हरि हर हरात्मक” नाम दिया है।

श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक – “हरि हर हरात्मक” ज्योतिष संस्थान
संपर्क सूत्र – 

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“श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष। सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष॥”

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