शीघ्र विवाह हेतु गन्धर्वराज विश्वावसु की उपासना

mantra of Gandharvaraj of Vishwavasu marriage Hari Har Haratmak

गन्धर्व-राज विश्वावसु की उपासना मुख्यतः ‘वशीकरण’ और ‘विवाह’ के लिये की जाती है। स्त्री-वशीकरण और विवाह के लिये इनके प्रयोग अमोघ है।

जपेन् मन्त्रः

“ॐ विश्वावसु-गन्धर्व-राज-कन्या-सहस्त्रमावृत, ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्रयच्छ स्वाहा।”

विनियोग

ॐ अस्य श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राज-मन्त्रस्य श्रीरुद्र-ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजः देवता, ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, विश्वावसु-गन्धर्व-राज प्रीति-पूर्वक ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्राप्तयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास

  • श्रीरुद्र-ऋषये नमः शिरसि,
  • अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे,
  • श्रीविश्वावसु-गन्धर्व-राजः देवतायै नमः हृदि,
  • ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये,
  • स्वाहा शक्तये नमः पादयोः,
  • विश्वावसु-गन्धर्व-राज प्रीति-पूर्वक ममाभिलाषितां अमुकीं कन्यां प्राप्तयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।

कराङ्ग-न्यास

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।

षडङ्ग-न्यास

ॐ ह्रां हृदयाय नमः।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।
ॐ ह्रैं कवचाय हुं।
ॐ ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्।

पुनः कराङ्ग-न्यास

  • ॐ ह्रां ॐ विश्वावसु अंगुष्ठाभ्यां नमः।
  • ॐ ह्रीं गन्धर्व-राज तर्जनीभ्यां नमः।
  • ॐ ह्रूं कन्या-सहस्त्रमावृत मध्यमाभ्यां नमः।
  • ॐ ह्रैं ममाभिलाषितां अनामिकाभ्यां नमः।
  • ॐ ह्रौं अमुकीं कन्यां कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
  • ॐ ह्रः प्रयच्छ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः।

इसी क्रम से ‘षडङ्ग-न्यास’ कर ‘दिग्-बन्धन’ करे। यथा-

दिग्-बन्धन

‘ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ’ से ‘दिग्-बन्धन करे।
“ॐ रां रं रं तेजोज्ज्वलप्रकाशाय नमः” से अपने चारों ओर तीन अग्नि-प्राकारों का ध्यान करे।
फिर मूल-मन्त्र से तीन, पाँच या सात बार व्यापक न्यास करे। फिर अपने शरीर में पीठ-न्यास करे।

पीठ-न्यास

  • मं मण्डूकाय नमः मूलाधारे।
  • कां कालाग्नि-रुद्राय नमः स्वाधिष्ठाने।
  • कं कच्छपाय नमः हृदये।
  • आं आधार-शक्तये नमः।
  • कं कूर्माय नमः।
  • धं धरायै नमः।
  • क्षीं क्षीर-सागराय नमः।
  • श्वें श्वेत-द्वीपाय नमः।
  • कं कल्प-वृक्षाय नमः।
  • मं मणि-प्राकाराय नमः।
  • हें हेम-पीठाय नमः। (कच्छप से हेम-पीठ तक का न्यास हृदय में होगा।)
  • धं धर्माय नमः दक्ष स्कन्धे।
  • ज्ञां ज्ञानाय नमः वाम-स्कन्धे।
  • वैं वैराग्याय नमः दक्ष-जानुनि।
  • ऐं ऐश्वर्याय नमः वाम-जानुनि।
  • अं अधर्माय नमः मुखे।
  • अं अज्ञानाय नमः वाम-पार्श्वे।
  • अं अवैराग्याय नमः नाभौ।
  • अं अनैश्वर्याय नमः दक्ष-पार्श्वे।

निम्न सभी मन्त्रों का हृदय में न्यास करे

  • अं अनन्ताय नमः।
  • चं चतुर्विंशति-तत्त्वेभ्यो नमः।
  • पं पद्माय नमः।
  • आं आनन्द-कन्दाय नमः।
  • सं सम्विन्नालाय नमः।
  • विं विकार-मय-केसरेभ्यो नमः।
  • प्रं प्रकृत्यात्मक-पत्रेभ्यो नमः।
  • पञ्चाशद्-वर्णाढ्य-कर्णिकायै नमः।
  • सं सूर्य-मण्डलाय नमः।
  • चं चन्द्र-मण्डलाय नमः।
  • वैं वैश्वानर-मण्डलाय नमः।
  • सं सत्त्वाय नमः।
  • रं रजसे नमः।
  • तं तमसे नमः।
  • आं आत्मने नमः।
  • अं अन्तरात्मने नमः।
  • पं परमात्मने नमः।
  • ज्ञां ज्ञानात्मने नमः।
  • मां माया-तत्त्वात्मने नमः।
  • कं कला-तत्त्वात्मने नमः।
  • विं विद्या-तत्त्वात्मने नमः।
  • पं पर-तत्त्वात्मने नमः।

हृदयस्थ अष्ट-दल में प्रादक्षिण्य-क्रम से और मध्य में पीठ-शक्तियों का न्यास करे-

  • कां कान्त्यै नमः।
  • प्रं प्रभायै नमः।
  • रं रमायै नमः।
  • विं विद्यायै नमः।
  • मं मदनायै नमः।
  • मं मदनातुरायै नमः।
  • रं रंभायै नमः।
  • मं मनोज्ञायै नमः।
  • कर्णिका में – ह्रीं सर्व-शक्ति-कमलासनाय नमः।

अब हृदयस्थ पीठ पर ‘ध्यान’ करे

ध्यान मन्त्र

१- कन्या-समूहैर्युव-चित्त-हारारुपै परितं उप-केतु-रुपम्।
अम्भोज-ताम्बूल-करं युवानं गन्धर्व-पौढां वने स्मरामि।।
२- ध्याये दिव्यं वर्त्ते रम्ये, तयवानमति-सुन्दरम्। सेवितं कन्यका-वृन्दैः सुन्दरैः भूषितां सदा॥
मुक्ता-हार-लसत्-पाणिः, पङ्जैरति-शोभनैः।
लीला-गृहित-कमलैर्मधुरालाप-कारिभिः॥

(उपर्युक्त दो ध्यानों में से कोई एक ध्यान करके ‘मानसिक-पूजन’ करें।) यथा…

मानसिक पूजन

  • लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय विलेपयामि नमः (अधो-मुख कनिष्ठा एवं अंगुष्ठ से)।
  • हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय समर्पयामि नमः (अधो-मुख तर्जनी एवं अंगुष्ठ से)।
  • यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय आघ्रापयामि नमः (अधो-मुख तर्जनी एवं अंगुष्ठ मिलाकर वाम-स्तन पर १० बार भावना से धूम-पात्र रखे)।
  • रं तेजस्तत्त्वात्मकं दीपं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय दर्शयामि नमः (उर्ध्व-मुख मध्यमा एवं अंगुष्ठ मिलाकर, दक्ष-स्तन पर १० बार भावना से दीप-पात्र रखे)।
  • वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय निवेदयामि नमः (उर्ध्व-मुख अनामिका एवं अंगुष्ठ से)।
  • शं शक्त्यात्मकं ताम्बूलादिकं श्री विश्वावसु-गन्धर्व-राजाय निवेदयामि नमः (उर्ध्व-मुख सभी अँगुलियों से)।

इस प्रकार पूजन करके कमल (पद्म), ताम्बूल और योनि-मुद्रा दिखाकर, यथा शक्ति जप करके ‘गुह्याति-गुह्य’ आदि मन्त्र से जप-फल का समर्पण करे।

पुरश्चरण
१- लाख जप। अयुत (१०,०००) हवन घृत-मिश्रित लाजा से। सहस्त्र (१०००) तर्पण। शत (१००) मार्जन। दश ब्राह्मण भोजन।

प्रयोग

  • १- कल्पतरु के नीचे मणि-मण्डप में सिंहासन पर बैठे हुए, गन्धर्व-राज-विश्वावसु का ध्यान करते हुए जलाञ्जलि देकर, नित्य १०८ जप करने से एक मास में उत्तम आभूषणों से सुसज्जित ‘कन्या’ की प्राप्ति होती है।
  • २- जल के किनारे, इक्षु-क्षेत्र (गन्ने के खेत) अथवा कदली (केला) वन में मन्त्र का यथा-शक्ति जप तथा दशांश हवन-तिल और पायस से करने पर अभीष्ट कन्या प्राप्त होती है। यह १ मास का प्रयोग है।
  • ३- शाल-वृक्ष की लकड़ी की ११ अंगुल की कील १००८ बार अभिमन्त्रित कर, अभीष्ट कन्या के घर में रखने से वह कन्या प्राप्त होती है।
  • ४- मन्त्र में से ‘अमुकी’ पद अलग करके ‘जप’ करने से सबका आकर्षण होता है।

“श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष। सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष॥”

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