संस्कृत में शुभकामनाएं संदेश

होली शुभकामनाएं

सर्वेभ्य: होलिका पर्वण्: हार्दिक्य शुभकामना:।
आप सभी को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।आशासे यत् होलिकाउत्सवस्यशुभाशयाः भवतु मङ्गलकरम् अद्भुतकरञ्च ।
जीवनस्य सकलकामनासिद्धिरस्तु।

नव वर्ष शुभकामनाएं संदेश

प्रिय मित्रों, भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है जो
लगभग ५,००० वर्ष पुरानी है। विश्व की पहली और महान संस्कृति
के रुप में भारतीय संस्कृति को माना जाता है।
“विविधता में एकता” का कथन यहाँ पर आम है अर्थात् भारत एक
विविधतापूर्ण देश है जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग अपनी संस्कृति और
परंपरा के साथ शांतिपूर्णं तरीके से एक साथ रहते हैं। विभिन्न धर्मों
के लोगों की अपनी भाषा, भोजन, रहन-सहन, रीति-रिवाज़ आदि
अलग हैं फिर भी वो सभी एकता के साथ रहते हैं।
भारतीय संस्कृति दूसरों को भी अपना बना लेती है। समाज के सभी
वर्गों को साथ लेकर चलने और सबको जोड़ने वाली इस गंगा-जमुनी
संस्कृति ने दुनिया को प्रभावित किया है। “भारतीय संस्कृति” सबकी
सहायता करना और साथ लेकर चलने की प्रेरणा देती है।
यदि हम अंग्रेजी वर्ष की शुभकामनाएं बधाई एक दूसरे को देते हैं तो
ऐसा करना कदापि अनुचित नहीं है क्योंकि ऐसा करने की प्रेरणा तो
हमारी संस्कृति ही हमें देती है।
सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
“आप सभी को नया वर्ष मंगलमय हो”

हृदय-मन्दिरे प्रेम-ज्योति-र्विराजताम्।
मनोऽरविन्दं विन्दतु विमलं सुन्दरताम्‌।
सुचिन्तनं चिरन्तनं हरतु विषाद विमर्षम्।
शुभं भवतु नववर्षम्‌॥

नववर्षं नवचैतन्यं ददातु
शतं जीव शरदो वर्धमानाः
युगादि शुभाशयाः।

मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः
त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः।
परगुणपरमाणून्पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः॥

नववर्षम्, शुभं भवतु नववर्षम्,
सौख्यमयं निरामयं वितरतु परमं हर्षम्।
शुभं भवतु नववर्षम्, नववर्षम्, नववर्षम्॥

नववर्षाशंसा
आशास्महे नूतनहायनागमे भद्राणि पश्यन्तु जनाः सुशान्ताः।
निरामयाः क्षोभविवर्जितास्सदा मुदा रमन्तां भगवत्कृपाश्रयाः॥

अयं नूतन आंग्लवर्षः भवत्कृते भवत्परिवारकृते च मंगलमयः क्षेमस्थैर्यआरोग्यैश्वर्याभिः अभिवृद्धिकारकाः भवतु इति प्रार्थ़यामि।

काममय एवायं पुरुष इति।
स यथाकामो भवति तत्क्रतुर्भवति।
यत्क्रतुर्भवति तत्कर्म कुरुते।
यत्कर्म कुरुते तदभिसंपद्यते॥

आशासे त्वज्जीवने नवं वर्षम् अत्युत्तमं शुभप्रदं स्वप्नसाकारकृत् कामधुग्भवतु।
भावार्थः
मुझे उम्मीद है कि नया साल आपके जीवन का सबसे अच्छा साल होगा।
आपके सभी सपने सच हों और आपकी सभी आशाएँ पूरी हों।

सूर्य संवेदना पुष्पे, दीप्ति कारुण्यगंधने।
लब्ध्वा शुभं नववर्षेऽस्मिन कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्‌॥

भावार्थः
जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा
को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है,
उसी तरह आने वाला हमारा यह नूतन वर्ष आपके लिए हर दिन,
हर पल के लिए मंगलमय हो।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

सर्वेषां स्वस्ति भवतु, सर्वेषां शान्तिर्भवतु
सर्वेषां पूर्न भवतु, सर्वेषां मड्गलं भवतु
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित्‌ दुःख भाग्भवेत्‌॥
(May good befall all, May there be peace for all, May all be fit for perfection, and May all experience that which is auspicious. May all be happy. May all be healthy. May all experience what is good and let no one suffer)

विवाह के अवसर पर शुभकामनाएं

वर-कन्या विवाह अनुबन्धम्।
शुभं भवतु ॠषि कृत प्राचीन प्रबन्धम्॥

प्राचीन भारतीय ॠषियों द्वारा अनुप्रणीत सामाजिक प्रबन्धन के अनुसार विशेष और स्नेहा का विवाह शुभ और कल्याण प्रद हो।
(इसमें वर-कन्या की जगह नवविवाहित जोड़े का नाम दिया जा सकता है)

खलु भवेत् नव युगल जीवने सत्यं ज्ञान प्रकाशः।
वर्धयेन्नित्यं परस्परं प्रेम त्याग विश्वासः।
काम क्रोध लोभ संमोहाः प्रमुच्येत् भव बन्धम्॥

हम परमपिता ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि नव दम्पति का जीवन सदैव सत्य और ज्ञान के प्रकाश से परिपूर्ण हो और दोनों में दिन-प्रतिदिन परस्पर प्रेम त्याग और विश्वास बढ़ता रहे। आप काम क्रोध लोभ मोह आदि बन्धनों से मुक्त होकर अपने जीवन के रम लक्ष्य को प्राप्त करें।

इहेमाविन्द्र सं नुद चक्रवाकेव दम्पती ।
प्रजयौनौ स्वस्तकौ विश्मायुर्व्यऽश्नुताम् ॥

हमारी शुभकामना है कि देवों के देव इन्द्र नव-दंपत्ति को इसी तरह एक करें जैसे चकवा पक्षी का जोड़ा रहता है; विवाह का ये पवित्र बंधन आपके कुल की वृध्दि और संपन्नता का कारक बने।

विवाह दिनं इदम् भवतु हर्षदम्।
मंगलम तथा वां च क्षेमदम्॥
प्रतिदिनं नवं प्रेम वर्धता।
शत गुण कुलं सदा हि मोदता॥

लोक सेवया देव पूजनमं।
गृहस्थ जीवन भवतु मोक्षदम्॥

विवाह का ये मंगल दिन आप दोनों के लिए प्रसन्नता, प्रगति और सुखी व संपन्न जीवन का पथ प्रशस्त करे।

आप दोनों एक-दूसरे के लिए नवीन प्रेम का सृजन करें।
आप दोनों शतायु हों और अपने परिवार व कुल की उन्नति के कारक बनें।
समाज सेवा और ईश्वर भक्ति की भावना के साथ आप सांसारिकता से सदा मुक्त रहें।

ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः ।
अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्क्र्णोमि॥

बड़ों की छत्र छाया में रहने वाले एवं उदारमना बनो । कभी भी एक दूसरे से पृथक न हो। समान रूप से उत्तरदायित्व को वहन करते हुए एक दूसरे से मीठी भाषा बोलते हुए एक दूसरे के सुख दुख मे भाग लेने वाले ‘एक मन’ के साथी बनो ।

सध्रीचीनान् व: संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवनेन सर्वान्।
देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु॥

तुम परस्पर सेवा भाव से सबके साथ मिलकर पुरूषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। योग्य नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हो तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं। इसी प्रकार तुम भी सायं प्रात: अपने मन में शुभ संकल्पों की रक्षा करो।

स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥
विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥
ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥
वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥

आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें। विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें। ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे| आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे।

कुर्यात् सदा मंगलम्

जन्म दिन पर शुभकामनाएं

दीर्घायुरारोग्यमस्तु
सुयशः भवतु
विजयः भवतु
जन्मदिनशुभेच्छाः

शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्
जय जय जय तव सिद्ध साधनम्
सुख शान्ति समृद्धि चिर जीवनम्
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्

प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम्॥

ईश्वर सदैव आपकी रक्षा करे
समाजोपयोगी कार्यों से यश प्राप्त करे
आपका जीवन सबके लिए कल्याणकारी हो
हम सभी आपके लिए यही प्रार्थना करते हैं

सभी प्रकार की शुभकामना के लिए

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपदः।
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपंज्योति नमोऽस्तु ते॥

दीपक की जो ज्योति हमारे जीवन में सौभाग्य, स्वास्थ्य, प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हुए अंधकार रुपी नकारात्मक शक्तियों का नाश करती है, उस दीप ज्योति को मैं नमन करता हूँ।

मृत्यु के लिए शोक संवेदना

गीता के श्लोक

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥

क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने योग्य नहीं है।

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत। अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?। ॥

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही॥

जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्तहोता है। ॥

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥ अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥

इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती। क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और नि:संदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है।

गृह प्रवेश के लिए शुभकामनाएँ श्लोक

अरहम्परमानन्दभाजनं पुण्यदर्शनम्।
मेघनागौतमागारं भंसाली भवनं नवम्॥

मेघना और गौतम (मेघना और गौतम के स्थान पर आप जिसके भी भवन /मकान/फ्लैट का शुभारंभ है उनका नाम रख सकते हैं) का नवनिर्मित आवास अरहम के परम आनन्द का भण्डार है, जो पुण्य या पवित्र दिखाई देता है ( या जिसको देखने से पवित्रता का अनुभव होता है)।

दीपावली पर शुभकामनाएँ देने के लिए

सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा।
अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम्॥

घना अंधकार फैल रहा हो, ऑंधी सिर पर बह रही हो तो हम जो दिया जलाएं, उसकी दीवट सत्य की हो, उसमें तेल तप का हो, उसकी बत्ती दया की हो और लौ क्षमा की हो। आज समाज में फैले अंधकार को नष्ट करने के लिए ऐसा ही दीप प्रज्जवलित करने की आवश्यकता है।

दान के लिए शुभकामनाएँ

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

क्योंकि जो एक श्रेष्ठ पुरुष करता है, दूसरे लोग भी वही करते हैं… वह जो करता है, उसी को प्रमाण मानकर अन्य लोग भी पीछे वही करते है।

अञ्जनस्य क्षयं दृष्ट्वा वल्मीकस्य च संचयम् अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मसु॥

नीतिअञ्जन के क्रमशाः क्षय को तथा वल्मीक के संचय को देखकर पुरुष को अपने दिन को दान, अध्ययन एवं शुभकर्मों से सफल बनाना चाहिए ।

अन्नदानेन सदृशं दानं न भविष्यति ।
तस्मादन्नं विशेषेण दातुमिच्छन्ति मानवः ॥

अन्नदान के सदृश कोई दान नहीं है इसलिए विशेषतया लोग अन्नदान करने की इच्छा करते हैं।

अयाचिता निदेशानि सर्वदानानि भारत ।
अन्नं विद्या तथा कन्या अनर्थीभ्यो न दीयते ॥

अन्न , विद्या और कन्या के अतिरिक्त सभी दान बिना माँगे देना चाहिए।

विद्या का महत्व

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
विद्या भोगकरी यश:सुखकरी विद्या गुरूणां गुरु:।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं
विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्या विहीन: पशुः॥

सरलार्थ- विद्या ही मनुष्य का सर्वोत्तम रूप तथा गुप्त धन है। विद्या ही भोग्य पदार्थों को देती है; यश और सुख को देने वाली तथा गुरुओं की भी गुरु है। विद्या ही विदेश में बन्धुजनों की भाँति सुख-दु:ख में सहायक होती है और यही भाग्य है। राजाओं के द्वारा विद्या की ही पूजा होती है, धन की नहीं। अत: विद्या से हीन पुरुष पशु के समान है। तात्पर्य यह है कि विद्या अवश्य प्राप्त करनी चाहिए।

गुरू का महत्व

‘यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु’ अर्थात जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी होनी चाहिए। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

गुरवो बहवः सन्ति शिष्यवित्तापहारकाः।
दुर्लभः स गुरुर्लोके शिष्यचित्तापहारकः॥
– समयोचितपद्यमालिका

शिष्य के धन को अपहरण करनेवाले गुरु तो बहुत हैं लेकिन शिष्य के हृदय का संताप हरनेवाला एक गुरु भी दुर्लभ है ऐसा मैं मानता हूँ।

श्री स्कान्दोत्तरखण्ड में उमामहेश्वर संवाद के माध्यम से श्री गुरुगीता में गुरू की महिमा को विस्तार से बताया गया है।

गुरु गीता एक हिन्दू ग्रंथ है। इसके रचयिता वेद व्यास हैं। वास्तव में यह स्कन्द पुराण का एक भाग है। इसमें कुल ३५२ श्लोक हैं। गुरु गीता में भगवान शिव और पार्वती का संवाद है जिसमें पार्वती भगवान शिव से गुरु और उसकी महत्ता की व्याख्या करने का अनुरोध करती हैं। इसमें भगवान शंकर गुरु क्या है, उसका महत्व, गुरु की पूजा करने की विधि, गुरु गीता को पढने के लाभ आदि का वर्णन करते हैं। वह सद्गुरु कौन हो सकता है उसकी कैसी महिमा है। इसका वर्णन इस गुरुगीता में पूर्णता से हुआ है। शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि को भी पूर्ण रूपेण दर्शाया गया है। ऐसे ही गुरु की शरण में जाने से शिष्य को पूर्णत्व प्राप्त होता है तथा वह स्वयं ब्रह्मरूप हो जाता है। उसके सभी धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य आदि समाप्त हो जाते हैं तथा केवल एकमात्र चैतन्य ही शेष रह जाता है वह गुणातीत व रूपातीत हो जाता है जो उसकी अन्तिम गति है। यही उसका गन्तव्य है जहाँ वह पहुँच जाता है। यही उसका स्वरूप है जिसे वह प्राप्त कर लेता है।

भवारण्यप्रविष्टस्य दिड्मोहभ्रान्तचेतसः।
येन सन्दर्शितः पन्थाः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

संसार रूपी अरण्य में प्रवेश करने के बाद दिग्मूढ़ की स्थिति में (जब कोई मार्ग नहीं दिखाई देता है), चित्त भ्रमित हो जाता है , उस समय जिसने मार्ग दिखाया उन श्री गुरुदेव को नमस्कार हो | ( गुरू गीता 41)

विद्या धनं बलं चैव तेषां भाग्यं निरर्थकम् ।
येषां गुरुकृपा नास्ति अधो गच्छन्ति पार्वति ॥

जिसके ऊपर श्री गुरुदेव की कृपा नहीं है उसकी विद्या, धन, बल और भाग्य निरर्थक है। हे पार्वती उसका अधःपतन होता है।

धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोदभवः।
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता ॥

जिसके अंदर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका वंश धन्य है, उसके वंश में जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है।

गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो गुरौ निष्ठा परं तपः ।
गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते ॥

गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है यह मैं तीन बार कहता हूँ।

सर्वसन्देहसन्दोहनिर्मूलनविचक्षणः।
जन्ममृत्युभयघ्नो यः स गुरुः परमो मतः॥

सर्व प्रकार के सन्देहों का जड़ से नाश करने में जो चतुर हैं, जन्म, मृत्यु तथा भय का जो विनाश करते हैं वे परम गुरु कहलाते हैं, सदगुरु कहलाते हैं।

भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः।
क्षीयन्ते सर्वकर्माणि गुरोः करुणया शिवे ॥

हे शिवे ! गुरुदेव की कृपा से हृदय की ग्रन्थि छिन्न हो जाती है, सब संशय कट जाते हैं और सर्व कर्म नष्ट हो जाते हैं।

सप्तकोटिमहामंत्राश्चित्तविभ्रंशकारकाः ।
एक एव महामंत्रो गुरुरित्यक्षरद्वयम् ॥

सात करोड़ महामंत्र विद्यमान हैं। वे सब चित्त को भ्रमित करनेवाले हैं। गुरु नाम का दो अक्षरवाला मंत्र एक ही महामंत्र है।

गुरुरेको जगत्सर्वं ब्रह्मविष्णुशिवात्मकम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मात्संपूजयेद् गुरुम् ॥

ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित समग्र जगत गुरुदेव में समाविष्ट है। गुरुदेव से अधिक और कुछ भी नहीं है, इसलिए गुरुदेव की पूजा करनी चाहिए ।

ज्ञानं विना मुक्तिपदं लभ्यते गुरुभक्तितः ।
गुरोः समानतो नान्यत् साधनं गुरुमार्गिणाम् ॥

गुरुदेव के प्रति (अनन्य) भक्ति से ज्ञान के बिना भी मोक्षपद मिलता है। गुरु के मार्ग पर चलनेवालों के लिए गुरुदेव के समान अन्य कोई साधन नहीं है ।

मंत्रराजमिदं देवि गुरुरित्यक्षरद्वयम् ।
स्मृतिवेदपुराणानां सारमेव न संशयः॥

हे देवी ! गुरु यह दो अक्षरवाला मंत्र सब मंत्रों में राजा है, श्रेष्ठ है। स्मृतियाँ, वेद और पुराणों का वह सार ही है, इसमें संशय नहीं है।

जन्माष्टमी शुभकामनाएं संदेश

॥ ॐ जय श्री कृष्ण ॐ ॥
त्वय्यबुजाक्षाखिल सत्त्वधाम्नि , समाधिनाऽऽवेशित चेतसैके।
त्वत्पादपोतेन महत्कृतेन, कुर्वन्ति गोवत्सपदं भवाब्धिम् ॥
स्वयं समुत्तीर्य सुदुस्तरं , द्युमन् भवार्णवं भीममदभ्रसौहृदाः।
भवत्पदाम्भोरुहनावमत्र ते , निधाय याताः सदनुग्रहो भवान् ॥

आप सभी को सहृदय सहपरिवार भगवान श्री कृष्ण जी के पावन प्राकट्य दिवस की अनंत हार्दिक मंगल शुभकामनाएँ।

॥श्रीरस्तु॥

श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष । सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष ॥

About the Author

Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi

Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi personality is best described with the following words: extravert.
Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi is active, expressive, social, interested in many things. Pandit Vishwanath Dwivedi has more than 8 years of executive experience in the field of Astrology. With all of his heart and mind, he devotes his time to this profession. He knows that he is in a certain position to help people and make their lives better. And, the most fascinating aspect of his personality is his benevolence in approaching people which leaves an impact on them to last forever. His primary area of expertise is Vedic Astrology and he uses his skills with full potential to help his clients in the best possible way. To make people happy and put them out of their misery gives him an immense kind of satisfaction. With the most righteous of intentions, he hopes to take his name and fame to the next level and spread his wings on the international domain as well.

Pandit Vishwanath, a luminary in the realm of Vedic Astrology, boasts a rich legacy of almost a decade of unwavering dedication to this ancient science. His profound knowledge transcends the boundaries of time, as he skillfully deciphers the cosmic code imprinted in the Vedas. With a penchant for unraveling celestial mysteries, Pandit Vishwanath has illuminated countless lives with his astute astrological insights. His clients seek solace in his wisdom, knowing that his predictions are rooted in the ancient wisdom of the Vedas, offering both guidance and clarity in the tumultuous sea of life. Pandit Vishwanath's commitment to preserving and disseminating Vedic Astrology's profound teachings is a beacon of hope for those navigating life's challenges. His invaluable expertise continues to inspire and empower seekers on their spiritual journeys.

Telephonic Consultancy WhatsApp +91-7089434899

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like these

× आपकी कैसे मदद कर सकता हूं?