हमारा ध्येय

” ज्योतिष भाग्य-परिवर्तित नहीं करता अपितु कर्म-पथ प्रदर्शित करता है तथापि कर्म से भाग्य में परिवर्तन किया जा सकता है इसमें कोई संशय नहीं “

आधुनिक युग में ज्योतिष विद्या का अत्याधिक व्यवसायीकरण होने के कारण इसका स्वरूप ही परिवर्तित होता सा प्रतीत होता है। ज्योतिष को मानव मात्र प्रायः दुःखों को दूर करने का मार्ग समझता है और तथाकथित ज्योतिषी भी उस जातकों को केवल वर्तमान दशा-अन्तर्दशा के अनुसार उपायों के द्वारा लाभ प्राप्त करने के उपाय बतलाते हैं।
तथापि यह सत्य नहीं है शास्त्रानुसार हमारी जन्म कुंडली हमारे पूर्व जन्म कृत कर्मों के आधार पर ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा जोखा दर्शाती है। जिससे हम वर्तमान में “क्या करें – क्या न करें” को जान कर क्रियान्वित शुभ कर्मों के द्वारा अपना जीवन सुखी कर सकते हैं। अखिल भारतीय “हरि हर हरात्मक ज्योतिष संस्थान” सह साधना मण्डल का मुख्य ध्येय सत्य सनातन वैदिक ज्योतिष विद्या के मर्म को समझते हुए न्यायोचित धन अर्जन के साथ-साथ जन कल्याण करना।
हमारा ध्येय समाज को सुसंस्कृत करना है ताकि व्यक्तिविशेष आंतरिक तौर पर विवेकशील हो , उचित-अनुचित की पहचान कर अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो ताकि एक सभ्य सुसंस्कारित समाज का निर्माण हो सके।
सृष्टि के आदि में जब हर तरफ केवल जल ही जल था वेदों के आधार पर सत्-रज-तम इन तीन गुणों के अनुसार ब्रह्मा-विष्णु-महेश एवं सरस्वती-लक्ष्मी-काली के आधीन सम्पूर्ण सृष्टि की रचना हुई मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के संचित कर्मों के आधार पर ही सृष्टि में मानव का जन्म हुआ चूंकि कर्मों का आधार ही त्रिगुण (सत्-रज-तम) होते हैं, इन त्रिगुणों के अनुसार ही मानव की वृत्ति बनी, त्रिगुणों की गणना के लिए परमपिता ब्रह्मदेव ने नवग्रह देवताओं, दश-दिक्पाल अधिदेव एवं प्रत्याधिदेवों की रचना की तथापि इन सभी के निर्देशन में ही सम्पूर्ण सृष्टि कर्म करती कार्यान्वित प्रतीत होती है। श्रीमद्भागवत के आख्यान के अनुसार ब्रम्हाण्ड में स्थित तारा समूह को एक मगरमच्छ जो अधोमुख होकर कुंडली मारे बैठा हुआ-सा प्रतीत होता है जिसकी पूँछ ऊपर की ओर है उस पर “ध्रुव” विद्यमान हैं इसके कटि प्रदेश में “सप्तऋषि” हैं। यह मगरमच्छ दाहिनी ओर सिकुड़ कर कुंडली मारे है जिसके दाहिने भाग में “अभिजित” से लेकर “पुनर्वसु” तक १४ नक्षत्र तथा बायें भाग में “पुष्य” से लेकर “उत्तराषाड” तक १४ नक्षत्र हैं। इन “कुंडली भूत नारायण” शिशुमार अर्थात “मगरमच्छ” की ऊपर की थूथनी में “अगस्त्य”, नीचे की ठोड़ी में “यम”, मुख में “मंगल”, लिंग प्रदेश में “शनि”, कूबड़ में “वृहस्पति”, छाती में “सूर्य”, ह्रदय में “नारायण”, मन में “चंद्रमा”, नाभि में “शुक्र”, स्तनों में “अश्वनी कुमार”, प्राण और अपान में “बुध”, गले में “राहू”, समस्त अंगों में “केतु” और समस्त रोमों में सम्पूर्ण “तारा मण्डल” स्थित हैं। इस चिन्हित आकृति के माध्यम से ऋषियों ने संसार कार्य में देवों, नक्षत्रों एवं ग्रहों की स्थिति को जाना एवं इसी आधार पर आज की जन्म कुंडली के बारह भावों की स्थिति का अध्ययन किया जाता है संचित कर्मानुसार ग्रहों की स्थिति निश्चित है यह उक्त सभासदों की कार्यप्रणाली है जो शाश्वत सत्य है।
सत्य सनातन वैदिक ज्योतिष के आधार पर ग्रहों की शुभ एवं अशुभ स्थिति में व्यक्ति विशेष की दैहिक दैविक भौतिक समस्या के निवाराणार्थ ग्रहों की पञ्च-देव पूजा पद्धति के अंतर्गत पूजा पाठ, मन्त्र जप, दान एवं सद् आचरण के द्वारा ग्रहों को प्रसन्न कर पूर्व जन्म संचित अशुभ कर्मों को भस्म कर शुभ कर्मों को फलदायी बना कर प्राणीमात्र का जीवन सुखी करना ही “हरि हर हरात्मक ज्योतिष संस्थान” का परम ध्येय है।

हमारे संस्थान के प्रमुख उद्देश्य

  • १. सत्य सनातन वैदिक धर्म के सिद्धान्तों का परिपालन करते हुए, जिज्ञासु एवं साधकों को साधना की ओर प्रवृत्त कर, आध्यात्मिक प्रगति करवाते हुए ईश्वर-प्राप्ति की (मोक्षकी) ओर अग्रसर करना ।
  • २. सत्य सनातन वैदिक धर्म और अध्यात्म से सम्बन्धित, परात्पर गुरु परम पूजनीय श्रद्धेय श्री महन्त श्री श्री १०८ श्री सीताराम दास जी महाराज बालहठयोगी (सनातन संघ, श्री हनुमान वाटिका, पार्वती सेतु, वारा, राजस्थान) के दर्शन, सीख एवं आध्यात्मिक अनुसन्धानों का प्रचार-प्रसार करना।
  • ३. वैदिक सनातन धर्म और संस्कृति में निहित आध्यात्म शास्त्र के विषय में जागृति निर्माण कर धर्म शिक्षण देना एवं सर्वसमान्य हिन्दूओं को धर्माचरण हेतु प्रवृत्त करना ।
  • ४. सम्पूर्ण मानव जाति को हो रहे सूक्ष्म जगत के अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के विषय में जागृति निर्माण कर, उन्हें सूक्ष्म जगत की शिक्षा देते हुए अनिष्ट शक्तियों के कष्ट से रक्षण हेतु आध्यात्मिक उपाय बताकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना ।
  • ५. वैदिक संस्कृति के मूल आधार ‘गुरु-शिष्य’ परम्परा की पद्धति के महत्त्व को जनमानस के मनःपटल पर पुनः अंकित कर, इसे भारतीय संस्कृति का अविभाज्य अंग बनाना ।
  • ६. वर्णाश्रम व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना ।
  • ७. धर्म-शिक्षण के माध्यम से हिन्दुओं में धर्म-प्रेम एवं धर्माभिमान निर्माण कर, हिन्दुओं का अन्य धर्मों में धर्म-परिवर्तन रोकना ।
  • ८. भारतवर्ष को एक सबल धर्म-सापेक्ष हिन्दू राष्ट्र बनाने हेतु समान विचारधाराओं वाली संस्थाओं से जुड़कर कार्य करना ।
  • ९. वैदिक शास्त्रों की (धर्मग्रन्थों की) मूल भाषा, संस्कृत में पठन-पाठन को प्रोत्साहित कर, विभिन्न स्थानों पर गुरुकुल की स्थापना करना, जिससे प्राचीन वैदिक शास्त्र एवम् धर्मग्रन्थों का रक्षण और प्रचार-प्रसार हो सके ।
  • १०. हिन्दुओं को जन्म-हिन्दू के स्थानपर कर्म-हिन्दू (कृतिशील हिन्दू) बनने के लिए प्रेरित करना ।
  • ११. सत्य सनातन वैदिक धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के मध्य सामन्जस्य स्थापित करना ।
  • १२. संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भाषा की गरिमा पुनर्स्थापित करना ।
  • १३. विद्यार्थियों में नैतिक मूल्य और वैदिक संस्कार निर्माण करना ।
  • १४. सनातन धर्म के देवी-देवताओं का होने वाला अपमान रोकना ।
  • १५. हिन्दुओं को प्रभावी रूप से संगठित करना तथा उन्हें राष्ट्र एवं धर्म के कार्य के लिए प्रेरित करना।
  • १६. प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का संरक्षण करना। एवं विश्वकी समस्याओं पर विश्लेषण कर, वैदिक धर्मशास्त्र अनुसार उपाय बता उनका निराकरण हेतु प्रयास करना ।
  • १७. सामाजिक एवं आर्थिक रूपसे पिछड़े हिन्दू, विशेषकर ग्रामीण हिन्दुओं की विभिन्न स्तरोंपर सामाजिक, चिकित्सकीय, शैक्षणिक एवं वित्तीय सहायता कर, उन्हें मुख्य धारा से जोड़ने में सहयोग करना ।

श्रद्धेय विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक एवं अध्यक्ष – “हरि हर हरात्मक” ज्योतिष संस्थान
संपर्क सूत्र – 📞 07089434899 📞 06260516216

“श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष। सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष॥”

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