“ॐ हरि हर नमो नमःॐ”
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉
सप्तमेश और द्वितीयेश एक साथ हों और उन पर शुक्र की पूर्ण दृष्टि हो । चतुर्थेश सप्तमस्थ हो और शुक्र चतुर्थस्थ हो तथा इन दोनों में मित्रताहो। सप्तमेश और नवमेश आपस में सम्बद्ध हों तथा शुक्र के साथ हों। बलवान् धनेश, सप्तमेश शुक्र से युत हो। अकस्मात् धन प्राप्ति के साधनों का विचार पंचम भाव से किया जाता है। यदि पंचम त्थान में चन्द्रमा बैठा हो और शुक्र की उसपर दृष्टि हो तो लाटरी से धन मिलता है। यदि द्वितीयेश और चतुर्थेश शुभग्रह की राशि में शुभग्रहों से युत या दृष्ट होकर बैठे हों तो भूमि में गड़ी हुई सम्पत्ति मिलती है। एकादशेश और द्वितीयेश चतुर्थ स्थान में हों और चतुर्थेश शुभग्रह की राशि में शुभग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक को अकस्मात् धन मिलता है। यदि लग्नेश द्वितीय स्थान में और द्वितीयेश ग्यारहवें स्थान में हो तथा एकादशेश लग्न में हो तो इस योग के होने से जातक को भूगर्भ से सम्पत्ति मिलती है। लग्नेश शुभग्रह हो और धन स्थान में स्थित हो या धनेश आठवें स्थान में स्थित हो तो गड़ा हुआ धन मिलता है।
॥ श्रीरस्तु ॥
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉
श्री हरि हरात्मक देवें सदा, मुद मंगलमय हर्ष।
सुखी रहे परिवार संग, अपना भारतवर्ष ॥
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉
संकलनकर्ता –
श्रद्धेय पंडित विश्वनाथ द्विवेदी ‘वाणी रत्न’
संस्थापक, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक
(‘हरि हर हरात्मक’ ज्योतिष संस्थान)
संपर्क सूत्र – 07089434899
┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉