राजनीति में ज्योतिष, पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र का सहारा लेना अति आवश्यक है। पंडित विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार ‘चुनाव जीतने के तीन बल हैं। अपनी कुण्डली को खोल कर देखिये कि यह तीनों बल आपके किस किस भाव में अपनी शोभा बढ़ा रहे हैं, और यह तीनों बल आपकी किन किन सफ़लता वाली कोठरियों के बंद तालों को खोल सकते हैं । पहला है- मानव बल, दूसरा है भौतिक बल और तीसरा है दैव बल। बिना दैव बल के न तो मानव बल का कोई आस्तित्व है और न ही भौतिक बल की कोई कीमत है। मानव बल और भौतिक बल समय पर फ़ेल हो सकता है लेकिन दैव बल इन दोनो बलों के समाप्त होने के बाद भी अपनी शक्ति से बचाकर ला सकता है।
पंडित विश्वनाथ प्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार भगवान श्री गणेश मानव बल के देवता हैं, माता लक्ष्मी भौतिक बल की दाता हैं और माता सरस्वती विद्या तथा शब्द बल की प्रदाता हैं। इन तीनों देव शक्तियों का उपयोग चुनाव में शर्तिया सफ़लता दिला सकती है। राहु को विराट रूप मे देखा जाता है। राजनीतिक क्षेत्र मे एक प्रकार का प्रभाव जनता के अन्दर प्रदर्शित करना होता है जिसके अन्दर जनता के मन मस्तिष्क मे केवल उसी प्रत्याशी की छवि विद्यमान रहती है जिसका राहु बहुत ही प्रबल होता है। राहु मंगल के साथ मिलकर अपनी शक्ति से जनता के अन्दर नाम कमाने की हैसियत देता है। राहु सूर्य के साथ मिलकर राजकीय कानूनो और राजकीय क्षेत्र के बारे मे बडी नालेज देता है।
वही राहु गुरु के साथ मिलकर उल्टी हवा को प्रवाहित करने के लिये भी देखा जाता है। राहु शनि के साथ मिलकर मजदूर संगठनों का मुखिया बना कर सामने लाता है। भारत का राहु वृश्चिक का राशि का है और इस राशि का राहु हमेशा ही भारत के दक्षिण को अपना प्रभुत्व देता है। जब राजनीति करने वाले एक नशे के अन्दर आ जाते हैं और उन्हे केवल अपने अहम के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता है, वे समझते है कि वे ही अपने धन और बाहुबल से सब कुछ कर सकते है राहु उनकी शक्ति को अपने ही कारण बनवा कर उन्हे ग्रहण दे देता है, लेकिन जो सामाजिक मर्यादा से चलते हैं, समाज को राजनीति से सुधारने के प्रयास करते हैं, राहु उन्हें भी ग्रहण देता जरूर है पर कुछ समय बाद उन्हे उसी प्रकार से उगल कर बाहर कर देता है जैसे हनुमान जी लंका में जाते समय सुरसा के पेट में गये जरूर थे लेकिन अपने बुद्धि और पराक्रम के बल पर बाहर भी आ गये थे।’
पं. विश्वनाथ द्विवेदी
जानिए किन ग्रहों की वजह से राजनैतिक सितारे बुलंदियों की ओर होते हैं अग्रसर
१. यदि सूर्य खुद की या उच्च राशि सिंह मेष में होकर केंद्र त्रिकोण आदि शुभ भावों में बैठा हो तो राजनीति में सफलता मिलती है।
२. सूर्य दशम भाव में हो या दशम भाव पर सूर्य की दृष्टि हो तो राजनीति में सफलता मिलती है।
३. सूर्य यदि मित्र राशि में शुभ भाव में हो और अन्य किसी प्रकार से पीड़ित ना हो तो भी राजनैतिक सफलता मिलती है।
४. शनि खुद की उच्च राशि मकर कुम्भ तुला में होकर केंद्र त्रिकोण आदि शुभ स्थानों में बैठा हो तो राजनीती में अच्छी सफलता मिलती है।
५.यदि चतुर्थेश चौथे भाव में बैठा हो या चतुर्थेश की चतुर्थ भाव पर दृष्टि हो तो ऐसे व्यक्ति को विशेष जनसमर्थन मिलता है।
६. चतुर्थेश का खुद की या उच्च राशि में होकर शुभ स्थान में होना भी राजनैतिक सफलता में सहायक होना माना गया है।
७. बृहस्पति यदि बलि होकर लग्न में बैठा हो तो राजनैतिक सफलता दिलाता है।
८. दशमेश और चतुर्थेश का योग हो या दशमेश चतुर्थ भाव में और चतुर्थेश दशम भाव में हो तो ये भी राजनीती में सफलता दिलाता है।
९. सूर्य और बृहस्पति का योग केंद्र त्रिकोण में बना हो तो ये भी राजनैतिक सफलता दिलाता है।
१०. बुध आदित्य योग सूर्य बुध यदि दशम भाव में बने और पाप प्रभाव से मुक्त हों तो राजनैतिक सफलता दिलाता है।
इस ग्रह के कमजोर होने में राजनीति में सफलता नही मिलती
कुंडली में सूर्य शनि और चतुर्थ भाव बलि होने के बाद व्यक्ति को राजनीति में किस स्तर तक सफलता मिलेगी यह उसकी पूरी कुंडली की शक्ति और अन्य ग्रह स्थितियों पर निर्भर करता है। जिन लोगो की कुंडली में सूर्य नीच राशि तुला में हो राहु से पीड़ित हो अष्टम भाव में हो या अन्य प्रकार पीड़ित हो तो राजनीति में सफलता नहीं मिल पाती या बहुत संघर्ष बना रहता है। शनि पीड़ित या कमजोर होने से ऐसा व्यक्ति चुनावी राजनीति में सफल नहीं हो पाता कमजोर शनि वाले व्यक्ति की कुंडली में अगर सूर्य बलि हो तो संगठन में रहकर सफलता मिलती है।