त्रिकाल संध्या विधि

संध्यामुपासते ये तु सततं संशितव्रताः।
विधूतपापास्ते यान्ति ब्रह्मलोकं सनातनम्॥

स्वकाले सेविता के संध्या नित्यं कामदुघा भवेत्।
अकाले सेविता सा च संध्या वन्ध्या वधुरिव॥
प्रातः संध्यां सनक्षत्रां मध्याह्ने मध्य भास्करम्।
ससूर्यां पश्चिमां संध्यां तिस्त्रः संध्या उपासते॥

अर्थात् प्रातःकाल तारों के रहते हुए, मध्याह्नकाल में जब सूर्य आकाश के मध्य में हो, सायंकाल में सूर्यास्त होने पहले ही तीन प्रकार की संध्या करनी चाहिए।
प्रातःकाल में पूर्व की ओर मुख करके जब तक सूर्यदर्शन न हो तब तक जप करते रहना चाहिए एवं सायंकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जब तक तारों का उदय न हो, तब तक जप करते रहना चाहिए।

संध्या उपयोगी पात्र

आसन, प्रधान जलपात्र(१), घंटी एवं संध्या का विशेष जलपात्र(१), पात्र चन्दन पुष्पादि के लिए(१), पञ्चपात्र(२), आचमनी(२), अर्घा(१), जल गिराने हेतु छोटी तामडी थाली(१)

प्रातःकाल संध्या

पूर्व, ईशानकोण या उत्तर दिशा की ओर मुख कर के आसन पर बैठ जायें, दोनों अनामिकाओं में पवित्री धारण कर लें, गायत्री मन्त्र पढकर शिखा बाँधे तथा तिलक लगाएँ।

पवित्रीधारणम्

ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्य ते पवित्र पते पवित्र पूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम॥

शिखा बन्धनम्

 ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥

तिलक

केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु॥
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्॥

आचमन

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।
ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः।

हस्तौप्रक्षालनः (जल से हाथ धो लें) ॐ ह्रृषीकेशाय नमः॥

विनियोग

(मार्जन के विनियोग का जल यह मन्त्र पढ़कर छोड़े)

ॐ अपवित्रः पवित्रो वेत्यस्य वामदेव ऋषिः, विष्णुर्देवता, गायत्रीच्छन्दः, हृदि पवित्रकरणे विनियोगः।

पवित्रीकरणम् (मार्जन)

(मार्जन का मन्त्र पढ़कर अपने शरीर एवं सामग्री पर जल छिड़के)

ॐ अपवित्रः पवित्रोऽवा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याऽभ्यन्तरः शुचि॥
पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।

संकल्प

(दाहिने हाथ में जल लेकर यह संकल्प पढ़े, संवत्सर, मास, पक्ष, तिथि, वार, गोत्र तथा अपना नाम उच्चारण करे। ब्राह्मण हो तो ‘शर्मा’ क्षत्रिय हो तो ‘वर्मा’ और वैश्य हो तो नाम के आगे ‘गुप्त’ शब्द जोड़कर बोले।)

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्विपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तस्य मध्यदेशे पुण्यप्रदेशे गंगायमुनयोः अमुकदिग्भागे अमुकनगरे ….…. क्षेत्रे देवद्विजगवां चरण सन्निधावास्मिन् श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य समयतो ….…. संख्या परिमिते प्रवर्त्तमानसंवत्सरे प्रभवादिषष्ठि -संवत्सराणां मध्ये ….…. नामसंवत्सरे, श्री सूर्य ….…. यायने, ….…. ऋतौ, महामांङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे ….…. मासे, ….…. पक्षे, ….…. तिथौ, ….…. वासरे, ….…. नक्षत्रे, ….…. योगे, ….…. करणे, ….…. राशिस्थिते चन्द्रे, ….…. राशिस्थितेश्रीसूर्ये, ….…. राशिस्थिते देवगुरौ शेषेशु ग्रहेषु यथायथा राशिस्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ….…. गोत्रोत्पन्नस्य ….…. शर्मणः(वर्मणः, गुप्तस्य वा) अहं ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं प्रातः (मध्याह्न अथवा सायं) संध्योपासनं कर्म करिष्ये।

आसन शुद्धि विनियोग

(आसन पवित्र करने के मंत्र का विनियोग पढ़कर जल गिराएं)
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसन पवित्रकरणे विनियोगः।

आसन शुद्धिकरणम्

(अब आसन पर जल छिड़क कर दायें हाथ से उसका स्पर्श करते हुए आसन पवित्र करने का मंत्र पढ़ें)
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

आचमन का विनियोग

(इसके लिए निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)
ऋत्तं चेत्ति माधुच्छन्दसोऽघमर्षण ऋषिरनुष्टुप्च्छन्दो भाववृत्तं दैवतमपामुपस्पर्शने विनियोगः।

आचमन मन्त्र

(निम्नलिखित मंत्र पढ़कर आचमन करे)
ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः।  समुद्रादर्णवादधि संवत्सरोऽअजायत अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्यमिषतोवशी। सूर्याचन्द्रमसैाधाता यथा  पूर्वमकल्पयत। दिवं च पृथिवींचांतरिक्षोमथो स्वः॥

(तदनन्तर दायें हाथ में जल लेकर बायें हाथ से ढककर ॐ के साथ तीन बार गायत्री मन्त्र से जल को अभिमंत्रित कर अपने चारों ओर छिड़क ले)

मन्त्र – ॐ आपोमामभिरक्षन्तु।

प्राणायाम विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः अग्नि परमात्मा देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः।
ॐ सप्तव्याहृतीनां विश्वामित्र जमदग्नि भरद्वाज गौतमात्रिवशिष्ठ कश्यपा ऋषयो गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतिपंक्ति त्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दांसि अग्निवाय्वादित्य बृहस्पति वरुणेन्द्र विष्णवो देवता अनादिष्ट प्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः।
ॐ तत्सवितुरिति विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता प्राणायामे विनियोगः।
ॐ आपो ज्योतिरिति शिरसः प्रजापतिः ऋषिर्यजुश्छन्दो ब्रह्माग्निवायुसूर्या देवताः प्राणायामे विनियोगः।

प्राणायाम मन्त्र

  • पूरक में नीलवर्ण विष्णु का ध्यान (नाभि देश में) करे। कुम्भक में रक्तवर्ण ब्रह्मा जी का (हृदय में) ध्यान करे।
  • रेचक में श्वेतवर्ण शंकर का (ललाट में) ध्यान करे। प्रत्येक भगवान् के लिए तीन-तीन (कुल ९) या एक-एक (कुल ३) बार प्राणायाम मंत्र पढ़े।
  • अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को दबाकर बायें छिद्र से श्वास को धीरे-धीरे खींचते हुए मन में मन्त्र का उच्चारण करते हुए पूरक प्राणायाम करें।
  • जब श्वांस खींचना रुक जाय तब अनामिका और कनिष्ठिका अंगुली से नाक के बायें छिद्र को दबा दें और मन में मन्त्र का उच्चारण करते हुए कुम्भक प्राणायाम करें।
  • अंगूठे को हटाकर नाक के दाहिने छिद्र से श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए मन में मन्त्र का उच्चारण करते हुए रेचक प्राणायाम करें।

(निम्नलिखित मंत्र से तीन बार प्राणायाम करे।)

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्॥

प्राणायाम पश्चात विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

सूर्यश्च मेति नारायण ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः॥

प्राणायाम पश्चात आचमन

ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्।  यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु।  यत्किञ्चदुरितम् मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा॥

मार्जन विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)
आपो हिष्ठेत्यादि त्र्यृचस्य सिन्धुद्वीप ऋषिर्गायत्री छन्द आपोदेवता मार्जने विनियोगः॥

मार्जन

(बायें हाथ में जल लेकर तीन कुशों अथवा तीन अंगुलियों से निम्नलिखित ९ मंत्रों द्वारा मार्जन करें। ७ मन्त्रों से सिर पर जल छिड़कें, ८वें मन्त्र से भूमि पर और ९वें मन्त्र से पुनः सिर पर जल छिड़कें)

  • १. ॐ आपो हि ष्ठा मयो भुवः।
  • २. ॐ ता न ऊर्जे दधातन।
  • ३. ॐ महे रणाय चक्षसे।
  • ४. ॐ यो वः शिवतमो रसः।
  • ५. ॐ तस्य भाजयतेह नः।
  • ६. ॐ उशतीरिव मातरः।
  • ७. ॐ तस्मा अरं गमाम वः।
  • ८. ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ। (भूमि पर)
  • ९. ॐ आपो जनयथा च नः॥

मस्तक पर जल छिड़कने हेतू विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

द्रुपदादिवेत्यस्य कोकिलो राजपुत्र ऋषिः अनुष्टुप् छन्द आपो देवता सौत्रामण्यवभृथे विनियोगः॥

मस्तक पर जल छिड़कने हेतू मन्त्र

(अब बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से उसे ढक कर, निम्नलिखित मन्त्र को तीन बार पढ़े, फिर उस जल को सिर पर छिड़क ले)

ॐ द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलदिव।
पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः॥

अघमर्षण विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

ऋतञ्चेति त्र्यृचस्य माधुच्छन्दसोऽघमर्षण ऋषिः अनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तं दैवतमघमर्षणे विनियोगः॥

अघमर्षण

(दाहिने हाथ में जल लेकर नाक से लगाकर, निम्नलिखित मन्त्र को तीन या एक बार पढ़े, फिर अपनी बाईं ओर जल पृथ्वी पर छोड़ दे। (मन में यह भावना करे कि यह जल नासिका के बायें छिद्र से भीतर घुसकर अन्तःकरण के पापको दायें छिद्र से निकाल रहा है, फिर उस जल की ओर दृष्टि न डालकर अपनी बायीं ओर शिला की भावना करके उस पर पाप को पटक कर नष्ट कर देने की भावना से जल उस पर फेंक दे।)

ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत ततो रात्र्यजायत।
ततः समुद्रो अर्णवः।
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरोऽअजायत अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्यमिषतोवशी।
सूर्याचन्द्रमसैाधाता यथा  पूर्वमकल्पयत।
दिवं च पृथिवींचांतरिक्षोमथो स्वः॥

मानस परिक्रमा मन्त्र

(निम्नलिखित मन्त्रो से सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति प्रार्थना करें, निम्न मन्त्रो को पढ़ते जाना है और अपने मन से चारों ओर बाहर भीतर परमात्मा को पूर्ण जानकार निर्भय, नीरशंक, उत्साही, आनंदित, पुरुषार्थी बनना है।)

ॐ प्राची दिगग्निधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योउस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥
ॐ दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषव।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योउस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः

ॐ प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नमिषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योउस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥
ॐ उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताशनिरीषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योउस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥

ॐ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः शि्वत्रो रक्षिता वर्षमिषवः
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योउस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥

ॐ ध्रुवा दिगि्वष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता विरुध इषवः।
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु।
योउस्मान द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥

विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुप्छन्दः आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः॥

आचमन

(निम्नलिखित मंत्र पढ़कर एक बार आचमन करे)

ॐ अन्तश्चरसिभूतेषु गुहायांविश्वतोमुखः।
त्वम् यज्ञस्त्वं वषट्कार आपोज्योतिरसोऽमृतम्॥

सूर्यार्घ्य विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग केवल पढ़े जल न छोड़े)

ॐकारस्य  ब्रह्मा ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता , भूर्भुवः स्वरीति महाव्याहृतीनां परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि अग्निवायुसूर्या देवताः, तत्सवितुरिति विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता सूर्यार्घ्यदाने विनियोगः॥

सूर्यार्घ्य मन्त्र

(अब प्रातःकाल की संध्या में सूर्य के सामने खड़ा हो जाए। एक पैर की एड़ी उठाकर तीन बार गायत्री मंत्र का जप करके पुष्प मिले हुए जल से सूर्य को तीन अंजलि जल दे। प्रातःकाल का अर्घ्य जल में देना चाहिए यदि जल न हो तो स्थल को अच्छी तरह जल से धो कर उस पर अर्घ्य का जल गिराए। अथवा बर्तन में अर्घ्य देकर उस जल को वृक्ष के मूल में विसर्जित कर दिया जाय। निम्न मन्त्रों से अर्घ्य समर्पित करें। )

ॐ सूर्यदेव सहस्रांशो, तेजोराशेः जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥ ब्रह्मस्वरूपिणे श्री सूर्यनारायणाय इदमर्घ्यं नमः॥

सूर्याय उपस्थान विनियोग

(अब निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

उद्वयमित्यस्य प्रस्कण्व ऋषिरनुष्टुप्छन्दः सूर्योदेवता, उदुत्यमित्यस्य प्रस्कण्वऋषिः निचृद्गायत्री छन्दः सूर्योदेवता, चित्रमित्यस्य कौत्सऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दः सूर्योदेवता, तच्चक्षुरित्यस्य दध्यङ्थर्वण ऋषिरक्षरातीतपुर उष्णिक्छन्दः सूर्योदेवता सूर्योपस्थाने विनियोगः॥

सूर्योपस्थान मन्त्र

(प्रातःकाल दोनों हथेलियों को आगे करके, यदि संभव हो तो सूर्य को खड़े होकर देखते हुए प्रणाम करें, दोपहर में दोनों हाथों को उठाकर एवम् सायंकाल में बैठकर हाथ जोड़कर निम्नलिखित मन्त्रों को पढकर सूर्य देवता को प्रणाम करें)

ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्॥
ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष ಆ सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्।
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं ಆ शृणुयाम शरदः शतं
प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्॥

गायत्री जप हेतू षडङ्गन्यास

(अब बैठ कर अंगन्यास करे, दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से “हृदय” आदि का स्पर्श करें)

  • ॐ हृदयाय नमः। (पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)
  • ॐ भूः शिरसे स्वाहा। (मस्तक का स्पर्श)
  • ॐ भुवः शिखायै वषट्। (शिखा का अंगूठे से स्पर्श)
  • ॐ स्वः कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की उँगलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की उँगलियों से दायें कंधे एक साथ स्पर्श करे)
  • ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट्। (दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श करे)
  • ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्। (यह मंत्र पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा उँगलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजाये।)

न्यास

(इसका प्रयोजन है: शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जागृत करना ताकि देव-पूजन जैसे श्रेष्ठ कृत्य को किया जा सके। बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उस जल में भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें।)

  • ॐ वां मे आस्येऽस्तु। (मुख को स्पर्श करें)
  • ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को स्पर्श करें)
  • ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
  • ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को स्पर्श करें)
  • ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को स्पर्श करें)
  • ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को स्पर्श करें)
  • ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)

ब्रह्मरूपा माता गायत्री का ध्यान

(निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर इसके अनुसार गायत्री देवी का ध्यान करे)

ॐ बालां विद्यां तु गायत्रीं लोहितां चतुराननाम् ।
रक्ताम्बरद्वयोपेतामक्षसूत्रकरां तथा॥
कमण्डलुधरां देवीं हंसवाहनसंस्थिताम्।
ब्रह्माणीं ब्रह्मदैवत्यां बह्मलोकनिवासिनीम्॥
मंत्रेणावाहयेद्देवीमायान्तीं सूर्यमण्डलात्।
ॐ श्वेतवर्णा समुद्दिष्टा कौशेयवसना तथा।
श्वेतैर्तिलेपनैः पुष्पैरलंकारैश्च भूषिता॥
आदित्यमण्डलस्था च ब्रह्मलोकगताथवा।
अक्षसूत्रधरा देवी पद्मासनगता शुभा॥


विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

ॐ तेजोऽसीति धामनामासीत्यस्य च परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिर्यजुस्त्रिष्टुबृगुष्णिहौ छन्दसी सविता देवता गायत्र्यावाहने विनियोगः॥

ब्रह्मरूपा माता गायत्री का आवाहन

(निम्नलिखित मंत्र से विनयपूर्वक गायत्री देवी का आवाहन करें)

ॐ तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि।
धामनामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि॥

ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
गायत्रिच्छन्दसां मातः ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि॥

ब्रह्मरूपा माता गायत्री का उपस्थान विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

ॐ गायत्र्यसीति विवस्वान् ऋषिः स्वराण्महापङ्क्तिश्छन्दः परमात्मा देवता गायत्र्युपस्थाने विनियोगः॥

ब्रह्मरूपा माता गायत्री को उपस्थान (प्रणाम)

(निम्नलिखित मंत्र से गायत्री देवी को प्रणाम करे)

ॐ गायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि।
न हि पद्यसे नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पदाय परोरजसेऽसावदो मा प्रापत्॥

गायत्री शापविमोचन

अथ् ब्रह्मा शापविमोचन विधि अथ् विनियोगः

ॐ अस्य श्री ब्रह्मशापविमोचनमंत्रस्य ब्रह्माऋषिर्भुक्तिमुक्तिप्रदा ब्रह्मशापविमोचनी गायत्रीशक्तिर्देवता गायत्रीछन्दः ब्रह्मशापविमोचने विनियोगः॥

(विनियोग करने के पश्चात् निम्न मंत्र से ब्रह्मा जी को नमस्कार करें)

ध्यानम्

गायत्री ब्रह्मेत्युपासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः तां पश्यन्ति धीराः सुमनसो वाचमग्रतः ॥

(तत्पश्चात ब्रह्मगायत्री पढ़ें।)

ब्रह्मगायत्री

ॐ वेदांतनाथाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात॥

(इसके पश्चात् ब्रह्माजी को प्रार्थना करनी है कि वे इस मन्त्र को शापविमुक्त करे। (गायत्री माँ को भी)

शापविमुक्ति मन्त्र

ॐ देवी गायत्रीत्वम् ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव॥

अथ् वसिष्ठ शापविमोचन विधि अथ् विनियोगः

ॐ अस्य श्री वसिष्ठशापविमोचनमंत्रस्य निग्रहानुग्रहकर्ता वसिष्ठऋषिर्वशिष्टानु गृहीता गायत्री शक्तिर्देवता विश्वोद्भवा गायत्री छन्दः वसिष्ठशाप विमोचनार्थ जपे विनियोगः

ध्यानम्

ॐ सोऽहंअर्कमयं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः।
आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतिरसोस्म्यहं ॥

(इस मंत्र को बोलने के पश्चात् योनिमुद्रा दिखाएं तथा तीन बार गायत्री मंत्र जपे )

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

(इसके पश्चात् मंत्र को शाप से विमुक्त करने के लिए निम्न मन्त्र के द्वारा वशिष्ठ जी से प्रार्थना करें।)

शापविमुक्ति मन्त्र

ॐ देवी गायत्री त्वं वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव ॥

अथ् विश्वामित्र शापविमोचन विधि अथ् विनियोगः

ॐ अस्य श्री विश्वमित्राशापविमोचनमंत्रस्य नूतनसृष्टिकर्ता विश्वामित्रऋषिर्विश्वामित्रानुगृहिता गायत्री शक्तिर्देवता वाग्देहा गायत्री छन्दः विश्वामित्रशापविमोचनार्थं जपे विनियोगः

ध्यानम्

ॐ गायत्रीं भजाम्यग्नीमुखीं विश्वगर्भा समुद्भवाः।
देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टिं तां कल्याणीमिष्टकरीं प्रपद्ये ॥

(इसके पश्चात् मंत्र को शाप से विमुक्त करने के लिए निम्न मन्त्र के द्वारा विश्वामित्र जी से प्रार्थना करे।)

शापविमुक्ति मन्त्र

ॐ देवि गायत्री त्वं विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव ॥

अथ् शुक्र शापविमोचन विधि विनियोगः

ॐ अस्य श्री शुक्रशापविमोचन मंत्रस्य श्री शुक्र ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः देवी गायत्री देवता शुक्रशापविमोचनार्थे जपे विनियोगः

ध्यानम्

सोऽहंअर्कमयं ज्योतिरर्क ज्योतिरहंशिवः।
आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतिरसोस्म्यहं॥

(इसके पश्चात् मंत्र को शाप से विमुक्त करने के लिए निम्न मन्त्र के द्वारा शुक्र जी से प्रार्थना करें।)

शापविमुक्ति मन्त्र

ॐ देवी गायत्री त्वं शुक्रशापाद्विमुक्ता भव ॥

इसके पश्चात् सभी की प्रार्थना करें।

ॐ अहो देवि महादेवि संध्ये विद्ये सरस्वति
अजरे अमरे चैव ब्रह्मयोनिर्नमोस्तु ते॥

(प्रार्थना करने के बाद फिर से निम्न मंत्र बोलकर शापविमुक्ति के लिए विनंती करें।)

ॐ देवी गायत्री त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव, वसिष्ठशापाद्विमुक्ताभव, विश्वामित्रशापाद्विमुक्ता भव, शुक्रशापाद्विमुक्ता भव,

इसके पश्चात् मन्त्र को शाप से मुक्त करके जाप प्रारम्भ करें।

ब्रह्मरूपा माता गायत्री मन्त्र जपेन् विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

ॐ कारस्य  ब्रह्मा ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, ॐ भूर्भुवः स्वरीति महाव्याहृतीनां परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि अग्निवायुसूर्या देवताः, ॐ तत्सवितुरिति विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः॥

जप माला मन्त्र

“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः”
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी । चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहणामि दक्षिणे करे । जपकाले च सिध्दयर्थ प्रसीद मम सिद्धये॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।

गायत्री जप मन्त्र

(कम-से-कम १०८ बार गायत्री-मंत्र का जप करें , २४ लक्ष जप करने से एक पुरश्चरण होता है)

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥

(मन्त्र जपान्तेऽष्टौ मुद्रयौ प्रदर्शयेत् – सुरभिः, ज्ञानम्, वैराग्यम्, योनिः, शंखः, पङ्कजम्, लिंङ्मम्, निर्वाणम्।)

प्रदिक्षणा विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

विश्वतश्चक्षुरिति भौवन ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दो विश्वकर्मा देवता सूर्यप्रदक्षिणायां विनियोगः।

सूर्य प्रदक्षिणा

(अब निम्नलिखित मन्त्र से अपने स्थान पर खड़े होकर सूर्य देव की एक प्रदक्षिणा करे)

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्।
सम्बाहुभ्यां धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूमि जनयन् देव एकः॥
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥

जप निवेदन विनियोग

(निम्नलिखित विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े)

ॐ देवा गातुविद इति मनसस्पतिर्ऋषिर्विराडनुष्टुप् छन्दो वातो देवता जपनिवेदने विनियोगः।

अनेन गायत्रीजपकर्मणा सर्वान्तर्यामी भगवान् नारायणः प्रीयतां न मम्

नमस्कार मन्त्र

( मंत्र पढ़कर नमस्कार करे)

ॐ देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित मनसस्पत इमं देव यज्ञ ಆ स्वाहा व्वाते धाः।

ब्रह्मरूपा माता गायत्री विसर्जन विनियोग

‘उत्तमे शिखरे’ इत्यस्य वामदेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः गायत्री देवता गायत्रीविसर्जने विनियोगः।

(विसर्जन के विनियोग का मंत्र पढ़कर जल गिराएं)

ब्रह्मरूपा माता गायत्री का विसर्जन मंत्र

ॐ उत्तमे शिखरे देवी  भूम्यां पर्वतमूर्धनि।
ब्राह्मणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथासुखम्॥

संध्योपासन कर्म समर्पण

अनेन संध्योपासनाख्येन कर्मणा श्री परमेश्वरः प्रीयतां न मम्।
ॐ तत्सत् श्री ब्रह्मार्पणमस्तु।

यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
पूर्णम् भवतु तत् सर्वं त्वत्प्रसादात् महेश्वरिः॥

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥
ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥
श्री विष्णुस्मरणात् परिपूर्णतास्तु

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरी ॥

ध्यातव्य : यह प्रातःकाल की सन्ध्याविधि है, मध्याह्न एवं सायं संध्या में कुछ मन्त्र (प्राणायाम का सूर्यउपस्थान आदि) परिवर्तित होते हैं। विविध पुस्तकों में संध्या विधि का अवलोकन करने पर कुछ-कुछ अंतर भी देखने को मिलता है , ऐसी स्थिति में स्वक्षेत्रीय विधि का अनुसरण करना उचित होगा।

मध्याह्न संध्या

प्रातःसंध्यानुसार करें। मध्याह्न संध्या उत्तराभिमुख होकर करें। सूर्य आकाश के मध्य में स्थित हो। प्राणायाम के पश्चात ‘ॐ सूर्यश्च मेति’ के विनियोग तथा आचमन मन्त्र के स्थान पर निम्नलिखित विनियोग मन्त्र पढें।

विनियोग

ॐ आपः पुनन्त्विति ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।

आचमन

ॐ आपः पुनन्तु पृथिवीं पृथ्वी पूता पुनातु माम्।
पुनन्तु ब्रह्मणस्पतिर्ब्रह्मपूता पुनातु माम्।
यदुच्छिष्टम भोज्यं च यद्वा दुश्चरितं मम्।
सर्वं पुनन्तु मामापोऽसतां च प्रतिग्रह ಆ स्वाहा

उपस्थान

(सीधे खडे होकर दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठायें)

अर्घ्य

सीधे खडे होकर सूर्य को एक अर्घ्य दें।

विष्णुरूपा माता गायत्री का ध्यान

ॐ मध्याह्ने विष्णुरूपां च ताक्षर्यस्थां पीतवाससाम्।
युवतीं च यजुर्वेदां सूर्यमण्डलसंस्थिताम्॥

ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥

सायंकालीन संध्या

प्रातःसंध्यानुसार करें। सायं संध्या पश्चिमाभिमुख होकर करें। प्राणायाम के पश्चात ‘ॐ सूर्यश्च मेति’ के विनियोग तथा आचमन मन्त्र के स्थान पर निम्नलिखित विनियोग मन्त्र पढें।

विनियोग

ॐ अग्निश्च मेति रुद्र ऋषिः प्रकृतिश्चछन्दोऽग्निर्देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः।

आचमन

(निम्नलिखित मन्त्र पढकर एक बार आचमन करें)

ॐ अग्निश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्य: पापेभ्यो रक्षन्ताम्।
यदह्ना पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्‌भ्या-मुदरेण शिश्ना अहस्तदवलुम्पतु।
यत्किञ्च दुरितं मयि इदमहं माममृतयोनौ सत्ये ज्योतिपि जुहोमि स्वाहा॥

अर्घ्य

पश्चिमाभिमुख होकर बैठे हुए सूर्य को तीन अर्घ्य दें।

सूर्योपस्थान

बैठे हुए दोनों हाथ बन्द कर कमल के सदृश करें।

शिवरूपा माता गायत्री का ध्यान

ॐ सायाह्ने शिवरूपा च वृद्धां वृषभवाहिनीम्।
सूर्यमण्डलमध्यस्थां सामवेदसमायुताम्॥

ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥

“श्री हरिहरात्मकम् देवें सदा मुद मंगलमय हर्ष। सुखी रहे परिवार संग अपना भारतवर्ष॥”

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Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi

Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi personality is best described with the following words: extravert.
Pandit Vishwanath Prasad Dwivedi is active, expressive, social, interested in many things. Pandit Vishwanath Dwivedi has more than 8 years of executive experience in the field of Astrology. With all of his heart and mind, he devotes his time to this profession. He knows that he is in a certain position to help people and make their lives better. And, the most fascinating aspect of his personality is his benevolence in approaching people which leaves an impact on them to last forever. His primary area of expertise is Vedic Astrology and he uses his skills with full potential to help his clients in the best possible way. To make people happy and put them out of their misery gives him an immense kind of satisfaction. With the most righteous of intentions, he hopes to take his name and fame to the next level and spread his wings on the international domain as well.

Pandit Vishwanath, a luminary in the realm of Vedic Astrology, boasts a rich legacy of almost a decade of unwavering dedication to this ancient science. His profound knowledge transcends the boundaries of time, as he skillfully deciphers the cosmic code imprinted in the Vedas. With a penchant for unraveling celestial mysteries, Pandit Vishwanath has illuminated countless lives with his astute astrological insights. His clients seek solace in his wisdom, knowing that his predictions are rooted in the ancient wisdom of the Vedas, offering both guidance and clarity in the tumultuous sea of life. Pandit Vishwanath's commitment to preserving and disseminating Vedic Astrology's profound teachings is a beacon of hope for those navigating life's challenges. His invaluable expertise continues to inspire and empower seekers on their spiritual journeys.

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